प्रथम-दूसरे और तीसरे, चौथे और पाँचवे खम्बे। सबको कुतर रहे भीतर घुस, घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।। जिनको सौंपी पहरेदारी, वो करते हैं चोरी-जारी, खाकर करते नमक हरामी, खुले आम करते गद्दारी, चाँदी-सोना लूट लिया सब, खम्बों पर धर दिये मुलम्मे। सबको कुतर रहे भीतर घुस, घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।। योगी-भोगी सन्त बने हैं, मोटे मगर महन्त बने है, दिखलाने के दाँत अलग हैं, पर खाने के दन्त घने हैं, अमल-धवल सी केंचुलियों में, छिपे हुए विषधर बदरंगे। सबको कुतर रहे भीतर घुस, घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।। जनता की है झोली खाली, भरी हुई है इनकी थाली. रक्षा-सौदों, ताबूतों में खेल-खेल में हुई दलाली, मुख में राम, बगल में चाकू रखकर बोल रहे जय-अम्बे। सबको कुतर रहे भीतर घुस, घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।। सुन्दर लगता बहुत धतूरा, लेकिन बहुत विषैला होता, झूठ बहुत प्यारा लगता है, लेकिन सत्य कसैला होता, जैसा देखा वही लिखा है, रक्षा करना हे जगदम्बे! सबको कुतर रहे भीतर घुस, घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।। |
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सोमवार, 20 जून 2011
"कीट निकम्मे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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लोकतंत्र के पाँचों खम्बों का सटीक अंकन किया है
जवाब देंहटाएंसचमुच अब तो माँ जगदम्बे ही बचा सकती है
जिनको सौंपी पहरेदारी,
जवाब देंहटाएंवो करते हैं चोरी-जारी,
खाकर करते नमक हरामी,
खुले आम करते गद्दारी
अरे वाह! बहुत सुन्दर व्यंजना
शांत चित्त श्रीमान में, देखी पहली रीस |
जवाब देंहटाएंकागद पर परगट हुई, रही सभी को टीस |
रही सभी को टीस, सड़े अब अगला खम्भा
लोकतंत्र की चमक, चढ़ा अब महामुलम्मा |
कह रविकर गुरुदेव, करें न इकदम चिंता ||
रहे देश आबाद, जगे अब प्यारी जनता ||
एक सटीक रचना ... माहौल ही ऐसा बन गया है ... आक्रोश शब्दों के रूप में निकल ही जाता है !
जवाब देंहटाएंआभार !
aaj hi maine ek comment kiya tha ki teen chakke puncture hai to gadi kaise chalegi,aapne chauthe ko bhi ko puncture kar diya aur panchva yani antakvad ko isse jod kar sidhe chhakka jad diya hai,sateek likha hai shastri ji.
जवाब देंहटाएंजिनको सौंपी पहरेदारी,
जवाब देंहटाएंवो करते हैं चोरी-जारी,
खाकर करते नमक हरामी,
खुले आम करते गद्दारी,
चाँदी-सोना चुरा-चुरा कर,
खम्बों पर धर दिये मुलम्मे।
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।
sachchai ko bakhoobi byan kiya hai.
शांत चित्त श्रीमान में, देखी पहली रीस |
जवाब देंहटाएंकागद पर परगट हुई, रही सभी को टीस |
रही सभी को टीस, सड़े न अगला खम्भा
लोकतंत्र की चमक, चढ़ेगा शुद्ध मुलम्मा |
कह रविकर गुरुदेव, करें न इकदम चिंता ||
रहे देश आबाद, जगे जब प्यारी जनता ||
वाकई दीमक से हैं ये कीट. अंदर ही अंदर खोखला कर दिया देश.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.
योगी-भोगी सन्त बने हैं,
जवाब देंहटाएंमोटे मगर महन्त बने है,
दिखलाने के दाँत अलग हैं,
पर खाने के दन्त घने हैं,
सटीक लेखन....
जनता की है झोली खाली,
जवाब देंहटाएंभरी हुई है इनकी थाली.
रक्षा-सौदों, ताबूतों में
खेल-खेल में हुई दलाली,
मुख में राम, बगल में चाकू
रखकर बोल रहे जय-अम्बे।
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन नकर कुछ कीट निकम्मे।।
bahut saarthak byang karati hui yathart batalaati hui bahut bemisaal rachanaa,badhaai aapko.
hamare desh mein sach bahut se ghun lag gaye hai
जवाब देंहटाएंमुख में राम, बगल में चाकू
जवाब देंहटाएंरखकर बोल रहे जय-अम्बे।
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।।
वाह! सटीक लिखा है आपने! सुन्दर रचना!
जिनको सौंपी पहरेदारी,
जवाब देंहटाएंवो करते हैं चोरी-जारी,
खाकर करते नमक हरामी,
खुले आम करते गद्दारी ..
आज कल ऐसे कीट हर जगह पाए जाते हैं ... अब ये कीट न रश कर आदमखोर हो गए हैं ... अच्छी व्यंग रचना शास्त्री जी ...
kahaan se laate hain aap aise soch....aafareen!!!
जवाब देंहटाएंआज देश को खोखला करने का काम कर रहे हैं ...सभी पर अच्छा प्रहार है .. बिल्कुल सटीक रचना ...
जवाब देंहटाएंघुन सचमुच में दुष्ट बहुत हैं,
जवाब देंहटाएंदेखो खम्भे खोद रहे हैं।
सटीक.. इन निकम्मे कीटों पर pesticide छिड़क दिया जाए .
जवाब देंहटाएंगीत में ऐसा विम्ब विलक्षण ही है... सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंसुन्दर लगता बहुत धतूरा,
जवाब देंहटाएंलेकिन बहुत विषैला होता,
झूठ बहुत प्यारा लगता है,
लेकिन सत्य कसैला होता,
जैसा देखा वही लिखा है,
रक्षा करना हे जगदम्बे!
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे....
बेहद सटीक अभिव्यक्ति शास्त्री जी । ऐसी निक्कमे कीट ही हमारी व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहे हैं ।
.
सटीक अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंजिनको सौंपी पहरेदारी,
जवाब देंहटाएंवो करते हैं चोरी-जारी,
खाकर करते नमक हरामी,
खुले आम करते गद्दारी
एक सटीक रचना ...
तीखे प्रहार संयमित परन्तु प्रभावकारी हैं ,शब्द संयोजन दृष्टान्त केअनुरूप आघाती है,जो काव्य को रुचिकर बना रखा है . सुंदर सृजन को सम्मान, बधाई .../
जवाब देंहटाएंमुख में राम, बगल में चाकू
जवाब देंहटाएंमीठे बोल बोलते डाकू
ऐसे लोगों से ही तो निपटना है...जगदम्बे की शरण में तो उन्हें जाना पड़ेगा...
जवाब देंहटाएंइन कीटों को ही तो मारना है. सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंsahi kha aapne...aabhar
जवाब देंहटाएंदेश के राजनीतिक विद्रूप पर खूब लिखा है "घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे ".किसी भी पूर्व चूक या गलती के लिए आपसे माफ़ी चाहता हूँ .
जवाब देंहटाएंसुन्दर लगता बहुत धतूरा,
जवाब देंहटाएंलेकिन बहुत विषैला होता,
झूठ बहुत प्यारा लगता है,
लेकिन सत्य कसैला होता,
वाह !!!!!
हर कविता है एक समुन्दर ,
उथल-पुथल, सर्वदा-निरंतर.
चलो निकालें मंथन करके
'कवि-मन-मोती' छुपा है अन्दर.
प्रथम-दूसरे और तीसरे,चौथे और पाँचवे खम्बे।सबको कुतर रहे भीतर घुस,घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे...
जवाब देंहटाएंदिखलाने के दांत अलग है , खाने के दांत अलग ...
एकदम सत्य !
gugu ji app ney bilkul thik hi kaha hai agar ek baar ghun lag jata hai to phir wo jaldi sey nahi jata hai. bahut sunder .
जवाब देंहटाएंसुन्दर लगता बहुत धतूरा,
जवाब देंहटाएंलेकिन बहुत विषैला होता,
झूठ बहुत प्यारा लगता है,
लेकिन सत्य कसैला होता,
जैसा देखा वही लिखा है,
रक्षा करना हे जगदम्बे!
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।।
सटीक और शानदार लिखा है।
जैसा देखा वही लिखा है,
जवाब देंहटाएंरक्षा करना हे जगदम्बे!
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।
...sateek....nikammon kee puri fauj ban gayee hai har jagah....
सुन्दर लगता बहुत धतूरा,
जवाब देंहटाएंलेकिन बहुत विषैला होता,
झूठ बहुत प्यारा लगता है,
लेकिन सत्य कसैला होता,
वाह ...बहुत खूब कहा है ।
जिनको सौंपी पहरेदारी,
जवाब देंहटाएंवो करते हैं चोरी-जारी,
खाकर करते नमक हरामी,
खुले आम करते गद्दारी,
चाँदी-सोना लूट लिया सब,
खम्बों पर धर दिये मुलम्मे।
सबको कुतर रहे भीतर घुस,
घुन बनकर कुछ कीट निकम्मे।।
zabardast!!!!!!!!!!!!
afsos magar in keet nikammo ko energy bhi ham dete hain aur jay jay kaar bhi ham hi karte hai...aur gharo me bhi hamare hi saindh lagti hai...na jane kab jagenge ham...jab bhi koi dharam ki duhayi deta hai ham aankhe meech lete hain aur apna hi ghar lutwate hain.
जवाब देंहटाएंsashakt abhivyakti.
बहुत कटु .. जबदस्त
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में अंतर्निहित बातों से पूरी तरह सहमत हूं. लेकिन पांचवां खंभा क्या है समझ नहीं पाया. क्या इंटरनेट मीडिया?
जवाब देंहटाएंइन कीटों को नाश करने का कोई रास्ता है क्या ..........बस ये ही पूछना है मुझे
जवाब देंहटाएंआखिर ये निकम्में कीट आयें कहाँ से?
जवाब देंहटाएंक्या हम जिम्मेवार नहीं?
एक प्रभावशाली कविता... मंच पर धूम मचा देगी...
जवाब देंहटाएं