निहित ज्ञान का पुंज है, गीता में श्रीमान।
पढ़ना इसको ध्यान से, इसमें है विज्ञान।१।
कर्म बनाता भाग्य को, यह जीवन-आधार।
कर्तव्यों के साथ में, मिल जाता अधिकार।२।
प्राणिमात्र कल्याण का, वेदों में सन्देश।
जीवन में धारण करो, ये अनुपम उपदेश।३।
करना है हमको सदा, ईश्वर पर विश्वास।
अन्धकार को चीर के, फैले धवल उजास।४।
अपने प्यारे देश का, आओ रक्खें मान।
जगद्गुरू बनकर पुनः, दुनिया को दें ज्ञान।५।
केवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार।
बैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।६।
चन्दा, सूरज-धरा भी, चलते हैं दिन-रात।
जो देते जड़-जगत को, शीतल-सुखद प्रभात।७।
चलना ही है जिन्दगी, रुकना तो है मौत।
सूरज जग रौशन करे, टिम-टिम हों खद्योत।८।
तुलसी, सूर-कबीर की, मीठी-मीठी तान।
निर्गुण-सगुण उपासना, भूल गया इन्सान।९।
उपादान के मर्म को, समझाते हूँ आज।
धर्म और सत्कर्म से, सुधरे देश-समाज।१०।
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बुधवार, 6 अगस्त 2014
"दोहे-फैले धवल उजास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 07/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
चलना ही है जिन्दगी, रुकना तो है मौत।
जवाब देंहटाएंसूरज जग रौशन करे, टिम-टिम हों खद्योत।८।
अर्थपूर्ण दोहावली सर्व -कालिक सत्य लिए हुए।
केवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार।
जवाब देंहटाएंबैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।
बेहतरीन ...
बेहतरीन ...प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसुंदर गीता ज्ञान !
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएं