आज अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।।
पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।।
बेटा-बेटी के लिए, समता के हों भाव।
मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।।
एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।।
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बुधवार, 15 अक्टूबर 2014
"दोहे-अहोई-अष्टमी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 16/10/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुरसुंदर प्रस्तुति...
दिनांक 16/10/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
सुन्दर सीख देती रचना वैसे आजकल स्त्रियाँ ये व्रत सिर्फ़ पुत्रों के लिए ही नही करतीं बल्कि पुत्रियों को भी बराबर का दर्जा देती हैं बदलाव की बयार बहनी शुरु हो गयी है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती अति उत्तम रचना....
जवाब देंहटाएंab badlaw aane laga hai .....sirf beton ke liye nahi balki betion ke liye bhi upwaas karne lagi hai maayen ...sundar bhaw liye rachna ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअहोई-अष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें! "
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut sunder
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBahut hi sunder rachna ..tyohar hi rochak jaankari prastut karti hui!!
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