मित्रों।
बहुत पहले एक रचना लिखी थी,
मगर मैं उसको पोस्ट करना भूल गया था।
देखिए इस गीत को।
इसे अपना स्वर दिया है
मेरी मुँहबोली भतीजी
अर्चना चावजी ने।
कल-कल, छल-छल
करती गंगा,
मस्त चाल से बहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
हो जाता निष्प्राण कलेवर,
जब धड़कन थम जाती हैं।
सड़ जाता जलधाम सरोवर,
जब लहरें थक जाती हैं।
चरैवेति के बीज मन्त्र को,
पुस्तक-पोथी कहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
हरे वृक्ष की शाखाएँ ही,
झूम-झूम लहरातीं हैं।
सूखी हुई डालियों से तो,
हवा नहीं आ पाती है।
जो हिलती-डुलती रहती है,
वही थपेड़े सहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
काम अधिक हैं थोड़ा जीवन,
झंझावात बहुत फैले हैं।
नहीं हमेशा खिलता गुलशन,
रोज नहीं लगते मेले हैं।
सुख-दुख की आवाजाही तो,
सदा संग में रहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
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सोमवार, 1 दिसंबर 2014
"चरैवेति-मेरा एक गीत, स्वर अर्चवा चावजी"
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सुन्दर गीत मधुर स्वर |
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