चराग़ लेके मुकद्दर तलाश करता हूँ
मैं कायरों में सिकन्दर तलाश करता हूँ
मिला नही कोई गम्भीर-धीर सा आक़ा
मैं सियासत में समन्दर तलाश करता हूँ
लगा लिए है मुखौटे शरीफजादों के
विदूषकों में कलन्दर तलाश करता हूँ
सजे हुए हैं महल मख़मली गलीचों से
रईसजादों में रहबर तलाश करता हूँ
मिला नहीं है मुझे आजतक कोई पत्थर
अन्धेरी रात में चकमक तलाश करता हूँ
पहन लिए है सभी ने लक़ब के दस्ताने
मैं इनमें “रूप” सुखनवर तलाश करता हूँ
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गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015
“ग़ज़ल-रूप सुखनवर तलाश करता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्या खूबसूरत ग़ज़ल है! बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल के लिए आभार! आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंधरती की गोद
बहुत सुंदर गजल.
जवाब देंहटाएंलगा लिए है मुखौटे शरीफजादों के
जवाब देंहटाएंविदूषकों में कलन्दर तलाश करता हूँ
बहुत खूब।
मिला नही कोई गम्भीर-धीर सा आक़ा
जवाब देंहटाएंमैं सियासत में समन्दर तलाश करता हूँ waah! bahut hi umda panktiyaan hai