आवारा बादल हुए, बरस रहे दिन-रात।
आठ दिनों से हो रही, लगातार बरसात।।
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घर बारिश में टपकते, परेशान मजदूर।
रोटी-रोजी के लिए, हुए बहुत मजबूर।।
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फसल धान की खेत में, जल में गयी समाय।
बचने को सैलाब से, कोई नहीं उपाय।।
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कुछ भागों में आ गयी, बहुत भयंकर बाढ़।।
उफन रहे बरसात में, नदी-गधेरे-गाढ़।।
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कल तक सूखा झेलते, अब बारिश की मार।
निर्धन-श्रमिक-किसान का, खिसक रहा आधार।।
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कुदरत की आगे नहीं, चलती कोई बिसात।
पर्वत में मैदान में, आफत की बरसात।।
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तरकारी का हाट में, अब तो हुआ अभाव।
आसमान छू रहे, दालों के भी को भाव।।
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जीवन जीने की रही, राह आज आसान।
मँहगाई को देख कर, परेशान इंसान।।
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मत के बदले में मिला, जनता को उपहार।
कृत्रिम हुए अभाव का, शासन जिम्मेदार।।
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सोमवार, 1 अगस्त 2016
दोहे "आफत की बरसात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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