लो साल पुराना बीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
फिरकों में था इन्सान बँटा,
कुछ अकस्मात् अटपटा घटा।
तब राजनीति का भिक्षुक भी,
झूठी हमदर्दी लिए डटा।
लोकतन्त्र का दानव फिर,
मानवता का घर रीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
जो कुटिया थी मंगलकारी,
वीरान हुई उसकी क्यारी।
भाषण में राशन बाँट रहे,
शासन में बैठे अधिकारी।
वो कैसे धीर धरेंगे अब,
जिनका दुनिया से मीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
अब दिवस सुहाने आयेंगे,
नूतन से हम सुख पायेंगे।
उपवन सुमनों से महकेगा,
फिर भँवरे गुन-गुन गायेंगे।
आशायें दिलाशा देती हैं,
अब रुदनभरा संगीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
नया सूर्य अब चमकेगा,
सारा अँधियारा हर लेगा।
जब सुख के बादल बरसेंगे,
तब “रूप” देश का दमकेगा।
धावकमन बाजी जीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
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शनिवार, 7 जनवरी 2017
गीत "धावकमन बाजी जीत गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बीते साल की यादें और नव वर्ष का आह्वान ... सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव.
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