इकत्तीस तारीख
आज है
पहली तारीख
कल भी था
सूरज उगा
आज भी उगा
पूरे परिवार ने
कल भी था
नाश्ता किया
आज भी किया
कल भी
भोजन में
दाल-भात,
सब्जी -रोटी थी
आज भी वही है
जो दिनचर्या कल थी
आज भी वही है
सब कुछ
पुराना सा ही तो है
कल भी सुपुत्र
करते थे
माँ-बाप की
सेवा और सम्मान
और कुपुत्र
आज भी करते हैं
माँ-बाप का अपमान
कल भी दफ्तर था
बॉस की थी झिड़कियाँ
आज भी वही है दफ्तर
और बॉस की झिड़कियाँ
बाजार में भी
वही सब दुकानें हैं
महँगाई भी वैसी ही है
नेताओं के
वही तेवर और इरादे
और भाषण में
वही झूठे वादे
कल भी थे
अभियन्ता और ठेकेदार
दिखाते थे
अपनी कारगुजारी
आज भी तो वहीं
हैं कंकड़-पत्थर
ईंट-सीमेंट और लोहा
हजम कर जाने वाले
जाँवाज अधिकारी
सुना है
नया साल आया है
आखिर बदला क्या है
नये साल में
मँगाई की तरह से
कैलेण्डर के
अन्तिम अंक में
इजाफा ही तो हुआ है
पिछले साल
2017 से 2018 हुआ था
इस साल भी
2018 से 2019 ही हुआ
है
नये साल में
अन्तिम
आदमी तो वही है
अन्त्योदय
जैसा कल था
वैसा ही आज भी है
सिर्फ अन्तिम
अंक ही तो बदला है
|
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मंगलवार, 1 जनवरी 2019
अकविता "नया साल आया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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