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कभी चढ़ाई है यहाँ, होता कभी ढलान।
नहीं समझना सरल कुछ, जीवन का विज्ञान।।
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सच्ची होती मापनी, झूठे सब अनुमान।
ताकत पर अपनी कभी, मत करना अभिमान।।
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कंचन काया को कभी, माया से मत तोल।
दौलत के अभिमान में, बुरे वचन मत बोल।।
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नहीं झेल पाया मनुज, कभी समय का वार।
ज्ञानी, राजा-रंक भी, गये समय से हार।।
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दाता के है हाथ में, सकल जगत की डोर।
हरदम उसकी रजा में, रहना भाव-विभोर।।
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कुदरत के कानून से, बचा न अब तक कोय।
जो चाहें भगवान जी, वैसा जग में होय।।
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कभी 'रूप' की धूप पर, मत करना अभिमान।
डरकर रहना समय से, समय बड़ा बलवान।।
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मंगलवार, 19 नवंबर 2019
दोहे "रहना भाव-विभोर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंशुभ,सार्थक,सुंदर संदेश देते दोहे।
सादर नमन सुप्रभात 🙏