शिवसेना के साथ अब, देगी
वो सहयोग।।
--
साँप-छछूँदर का हुआ, बहुत
अटपटा मेल।
होता सबसे अलग है,
राजनीति का खेल।।
--
शिवसेना का जान लो, पहले खूब मिजाज।
उड़ना बहुत सम्भालकर, सियासती परवाज।।
--
गठबन्धन में हैं नहीं, एक
समान विचार।
भाग-दौड़ फिर भी करें,
उद्धव-शरद पवार।।
--
कौन दे गया था दगा, रहे
समय को कोस।
दोनों के ही बीच में, अहमभाव
था ठोस।।
--
देख दुर्दशा भाजपा, हुई
बहुत लाचार।
शिवसेना के साथ में, बनी
नहीं सरकार।।
--
मंजिल पाने के लिए, नहीं
सूझती राह।
असमंजस में हैं पड़े,
मोदी-नड्डा-शाह।।
-- |
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शुक्रवार, 22 नवंबर 2019
दोहे "बहुत अटपटा मेल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत सही सामयिक रचना
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२३ -११ -२०१९ ) को "बहुत अटपटा मेल"(चर्चा अंक- ३५२८) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
समसामयिक रचना सर।
जवाब देंहटाएंआपके दोहे विशिष्ट होते हैं सदा।
मोदी, नड्डा, शाह, अभी हिम्मत ना हारे,
जवाब देंहटाएंमौक़ा मिलते ही ख़रीद लें, नेता सारे.
वोटर, तुझको हरदम मिटना ही है प्यारे,
फूटी है तक़दीर, उसे अब कौन सँवारे !
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सामयिक रचना....
जवाब देंहटाएंसमसामयिक राजनीतिक घटनाक्रम पर सुन्दर सृजन सर ।
जवाब देंहटाएं