चहल-पहल सहमी-सहमी है,
गरमी का अब मौसम आया।।
--
मलयानिल की बाट जोहते,
नव पल्लव भी मुरझाये हैं।
पीपल, गूलर भी आहत हैं,
युकलिप्टस भी बौराये हैं।।
ओढ़ धूप की धवल चदरिया,
सूरज ने अब रंग दिखाया।
चहल-पहल सहमी-सहमी है,
गरमी का अब मौसम आया।।
--
जीव-जन्तु आहत हैं कितने,
चातक-दादुर हैं अकुलाये।
तन-मन को लू ने झुलसाया,
मानसून जाने कब आये।
खेतों में पड़ गई दरारें,
टिड्ढी दल नभ में मँडराया।
चहल-पहल सहमी-सहमी है,
गरमी का अब मौसम आया।।
--
झोंपड़ियाँ सहमी-सहमी हैं,
महलों में भी चैन नहीं है।
निष्ठुर हआ दिवाकर दिन में,
सुख की अब तो रैन नहीं है।
सूख गये हैं ताल-सरोवर,
हरियाली का हुआ सफाया।
चहल-पहल सहमी-सहमी है,
गरमी का अब मौसम आया।।
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तपती गरम तवे सी धरती,
सूरज आज जवान हुआ है।
हिमगिरि से हिम पिघल रहा
है,
पागल सा दिनमान हुआ है।
एसी-कूलर फेल हो
गये,
कोरोना ने जाल बिछाया।
चहल-पहल सहमी-सहमी है,
गरमी का अब मौसम आया।।।
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मंगलवार, 26 मई 2020
गीत "गरमी का अब मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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तपन के साथ आस भी बढ़ी है, शायद विषाणु का नाश हो जाए
जवाब देंहटाएंसचमुच चहल-पहल सहमी सहमी ही है, खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंतालाबन्दी में जन-जीवन,
जवाब देंहटाएंकोरोना ने बहुत डराया।
चहल-पहल सहमी-सहमी है,
गरमी का अब मौसम आया।।
गर्मी अपने चरम पर हैं। बहुत सुंदर रचना।
सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंगर्मी का सुंदर विवरण
जवाब देंहटाएं