हमारे चारों ओर
जाल बुन लिया है
--
जाल!
हाँ जी!
जाल तो जाल ही होता है
चाहे वह मकड़ी का जाल हो
या बहेलिए का जाल
--
नदी, सरोवर सिन्धु में
चाहे मछलियाँ हों
या
मगरमच्छ हों
कोई नहीं बच सकता
जाल के फन्दे से
किन्तु एक उपाय है
--
आज हमें संगठित होकर नहीं
बल्कि
अलग-अलग रहकर
सावधानियों के साथ
इस जाल को काटना है
--
हवा में
पहले प्रदूषण की
समस्या थी
आज उसके साथ
विषाणु ने भी
डेरा डाल दिया है
--
घर-बाहर
आज कोई सुरक्षित नहीं है
सरदी-गरमी
या बरसात
कोई भी मौसम हो
इस विषाणु को
नहीं मार सका है
--
विडम्बना है ये
प्राणिमात्र के लिए
संकट काल है
जीना मुहाल है
--
विश्व परेशान है
कोरोना का जनक भी
हैरान है
नहीं बनी है
आठ महीने में भी
कोरोना विनाशक
कोई दवाई या
प्रतिरोधक वक्सीन
--
जीना तो पड़ेगा ही
मगर कैसे?
--
मुखपट्टी लगाकर
सामाजिक दूरी बनाकर
स्वच्छता के साथ
और धोना है
हर घण्टे साबुन से हाथ।
अब तो जीना सीखना है हमें
कोरोना के साथ।
--
|
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सोमवार, 6 जुलाई 2020
अतुकान्त "जीना पड़ेगा कोरोना के साथ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (7 -7 -2020 ) को "गुरुवर का सम्मान"(चर्चा अंक 3755) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
डरना नहीं डराना है
जवाब देंहटाएंहारना नहीं हराना है
कोरोना को भगाना है...
सकात्मकता का संचार करता सुन्दर सृजन ।
बहुत सटीक और उत्तम सलाह
जवाब देंहटाएंडरना नहीं डराना है
जवाब देंहटाएंहारना नहीं हराना है
कोरोना को भगाना है!!!!
यही सत्य है गुरु जी। सुप्रभात और प्रणाम🙏💐💐🙏🙏