चम्पू श्रव्य
काव्य का एक भेद है, अर्थात
गद्य-पद्य के मिश्रित् काव्य को चम्पू कहते हैं। गद्य तथा पद्य मिश्रित काव्य को
"चम्पू"
कहते हैं।
चम्पूकाव्य परम्परा का ज्ञान हमें अथर्ववेद
से प्राप्त होता है।
देखिए चम्पू काव्य में
मेरा प्रश्नजाल
"व्योम में घनश्याम क्यों छाया हुआ?"
(डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री ‘मयंक’)
|
कौन थे? क्या थे? कहाँ हम जा रहे?
व्योम में घनश्याम क्यों छाया हुआ?
भूल कर तम में पुरातन डगर को,
कण्टकों में फँस गये असहाय हो,
कोटि देव कभी यहाँ पर वास करते थे,
देवताओं के नगर का नाम आर्यावर्त था,
काल बदला, देव से मानव कहाये,
ठीक था, कुछ भी नही अवसाद था,
किन्तु अब मानव से दानव बन गये,
खो गयी जाने कहाँ प्राचीनता?
मानवी सब मूल्य अब तो मिट गये,
शारदा में पंक है आया हुआ,
हे प्रभो! इस आदमी को देख लो,
लिप्त है इसमे बहुत शैतानियत,
आज परिवर्तन हुआ कैसा विकट,
हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।
|
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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020
प्रश्नजाल-चम्पू काव्य "व्योम में घनश्याम क्यों छाया हुआ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१२-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-२९ 'प्रश्न '(चर्चा अंक ३७६०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आज के समय की सच्चाई कहता काव्य
जवाब देंहटाएंचम्पू श्रव्य काव्य का एक भेद है, अर्थात गद्य-पद्य के मिश्रित् काव्य को चम्पू कहते हैं। गद्य तथा पद्य मिश्रित काव्य को "चम्पू" कहते हैं।
जवाब देंहटाएंचम्पूकाव्य परम्परा का ज्ञान हमें अथर्ववेद से प्राप्त होता है।
ज्ञानवर्धक.....
लाजवाब चम्पूकाव्य
वाह!!!
ज्ञानवर्धक और सोचने पर मजबूर करता सृजन,काव्य का एक और रूप समझने को मिला,सादर नमन आपको सर
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