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छन्द का शाब्दिक अर्थ बन्धन होता है अर्थात्
जब वर्णों में मात्राओं, गति-यति और संख्या के अनुसार जो लेखन होता है उसे छन्द
कहा जाता है। इसे एक वाक्य में इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है।
"यदि गद्य का नियम व्याकरण है तो
छन्द, पद्य का रचना मानक है।"
छन्द शब्द की उत्पत्ति "चद्" धातु से हुई है। जिसका उल्लेख
हमें ऋग्वेद में मिलता है। छन्दों के बारे में जानने से पहले उसके तत्वों को
जानना भी आवश्यक होता है। जो निम्नवत हैं-
(1) वर्ण-मुख से निकलनेवाली ध्वनि को
सूचित करने के लिए निश्चित किए गए चिह्न ‘वर्ण’ कहलाते हैं। वर्ण दो प्रकार
के होते हैं–
(क) ह्रस्व (लघु),
(ख) दीर्घ (गुरु)।
इनका
विवेचन इस प्रकार है
(क) ह्रस्व
(लघु)-
वर्ण
मात्रा-गणना की प्रमुख इकाई है। लघु वर्ण एक मात्रिक होता है; यथा-अ, इ, उ, क, कि, कु। लघु का चिह्न।’ है। दो लघु वर्ण मिलाकर एक गुरु के बराबर माने जाते हैं। इसके
नियम इस प्रकार हैं-
संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते
हैं।
चन्द्रबिन्दुवाले वर्ण लघु या
एक मात्रावाले माने जाते हैं; यथा-हँसना, फँसना आदि में हँ, फँ।
ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी
वर्ण लघु ही होते हैं; जैसे–कि, कु आदि।
हलन्त-व्यंजन भी लघु मान लिए
जाते हैं; जैसे-अहम्, स्वयम् में ‘म्’।
(ख) दीर्घ
(गुरु)-
दीर्घ
वर्ण ह्रस्व या लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। दीर्घ वर्ण के लिए ” चिह्न प्रयुक्त होता है। मात्रिक छन्दों में मात्रा की गणना से
सम्बन्धित दीर्घ वर्ण सम्बन्धी नियम इस प्रकार हैं
संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ
होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है। जैसे–दुष्ट, अक्षर में ‘दु’ और ‘अ’। यदि संयुक्ताक्षर से नया
शब्द प्रारम्भ हो तो कुछ अपवादों को छोड़कर उसका प्रभाव अपने पूर्व शब्द के लघु
वर्ण पर नहीं पड़ता; जैसे–’वह भ्रष्ट’ में ‘ह’ लघु ही है।
अनुस्वार युक्त वर्ण
दीर्घ होते हैं; जैसे-कंत, आनंद में ‘कं’ और ‘न’।
विसर्गवाले वर्ण
दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-दुःख में ‘दुः’।
दीर्घ मात्राओं से
युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-कौन, काम, कैसे आदि। यदि उनका उच्चारण लघु की तरह किया गया है तो
उन्हें लघु ही माना जाएगा; जैसे–’कहेउ’ में ‘हे’। वास्तव में उच्चारण ही किसी
वर्ण को दीर्घ बनाने का आधार है।।
कभी-कभी चरण के अन्त
में लघु वर्ण भी विकल्पत: दीर्घ मान लिया जाता है। जैसे–’लीला तुम्हारी अति ही विचित्र’ में ‘त्र’ दीर्घ है।
(2) मात्रा
वर्ण के उच्चारण में जो समय
व्यतीत होता है, उसे ‘मात्रा’ कहते हैं। लघु वर्ण की एक मात्रा मानी जाती है। गुरु वर्ण के
उच्चारण में उससे दुगना समय लगता है, अत: उसकी दो मात्राएँ मानी
जाती हैं।
(3) गति
पढ़ते समय कविता के स्पष्ट
सुखद प्रवाह को गति कहते हैं।
(4) यति-छन्दों में विराम या रुकने के
स्थलों को यति कहते हैं।
(5) तुक
छन्द के चरणों के अन्त में एकसमान उच्चारण वाले शब्दों के
आने से जो लय उत्पन्न होती है, उसे तुक कहते हैं।
(6) शुभाक्षर
शुभाक्षर 15 हैं–क, ख, ग, घ, च, छ, ज, द, ध, न, य, श, स, क्ष, ज्ञ।
(7) अशुभाक्षर
इन्हें ‘दग्धाक्षर’ भी कहते हैं। दग्धाक्षरों को
कविता के प्रारम्भ में नहीं रखना चाहिए। ये अक्षर इस प्रकार हैं–ङ्, झ, ञ्, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, ब, भ, म, र, ल, व, ष, ह। आवश्यकतानुसार इनके
दोष-परिहार का भी विधान है।
(8) वर्णिक गण
वर्णिक वृत्तों में वर्षों की
व्यवस्था तथा गणना के लिए तीन-तीन वर्षों के गण-समूह बनाए गए हैं। इन्हें ‘वर्णिक गण’ कहते हैं। इनकी संख्या आठ है।
इनका विवरण अग्रवत् है-
इन गणों का रूप जानने के लिए ‘यमाताराजभानसलगा’ सूत्र विशेष रूप से सहायक है।
गण का नाम और उसकी मात्राओं की संख्या इस सूत्र के आधार पर सरलता से ज्ञात हो
जाती है; यथा-प्रारम्भ में आठ अक्षर आठ गणों के नाम हैं, उनकी मात्राओं को जानने के लिए प्रत्येक गण के वर्ण के आगेवाले
दो वर्ण लिखकर उसके लघु-गुरु क्रम से मात्राओं को जाना जा सकता है; जैसे–
यगण
में य मा ता = 5 मात्राएँ।
छन्द के
प्रकार
छन्द अनेक प्रकार के होते हैं, किन्तु मात्रा और वर्ण के आधार पर छन्द मुख्यतया दो प्रकार के
होते हैं–
(अ)
मात्रिक,(ब) वार्णिक।
इनका
विवेचन निम्नलिखित है
(अ) मात्रिक
छन्द
मात्रा की गणना पर आधारित छन्द ‘मात्रिक छन्द’ कहलाते हैं। इनमें वर्णों की
संख्या भिन्न हो सकती है, परन्तु उनमें निहित मात्राएँ
नियमानुसार होनी चाहिए।
(ब) वर्णिक
छन्द (केवल वर्ण)
गणना के आधार पर रचे गए छन्द ‘वर्णिक छन्द’ कहलाते हैं। वृत्तों की तरह
इनमें गुरु-लघु का क्रम निश्चित नहीं होता, केवल वर्ण-संख्या का ही
निर्धारण रहता है। इनके दो भेद हैं–साधारण और दण्डक। 1 से 26 तक वर्णवाले छन्द ‘साधारण’ और 26 से अधिक वर्णवाले छन्द ‘दण्डक’ होते हैं। हिन्दी के घनाक्षरी (कवित्त), रूपघनाक्षरी और देवघनाक्षरी ‘वर्णिक छन्द’ हैं।
वर्णिक छन्द का एक क्रमबद्ध, नियोजित और व्यवस्थित रूप ‘वर्णिक वृत्त’ होता है। ‘वृत्त’ उस सम छन्द को कहते हैं, जिसमें चार समान चरण होते हैं
और प्रत्येक चरण में आनेवाले वर्गों का लघु-गुरु क्रम सुनिश्चित रहता है। गणों
के नियम से नियोजित रहने के कारण इसे ‘गुणात्मक छन्द’ भी कहा जाता है। मन्दाक्रान्ता, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, वंशस्थ, मालिनी आदि इसी प्रकार के छन्द हैं।
(अ) मात्रिक
छन्द
मात्रिक
छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है, वर्गों के लघु और गुरु के
क्रम का विशेष ध्यान नहीं रखा जाता। इन छन्दों के प्रत्येक चरण में मात्राओं की
संख्या नियत रहती है। मात्रिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं–
1. सम,
2. अर्द्धसम,
3. विषम।
प्रमुख मात्रिक छन्द निम्नवत हैं-
चौपाई
परिभाषा-
चौपाई एक सम मात्रिक छंद है। चौपाई में
चार चरण होते है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती है।
उदाहरण-
जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु
तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ
माथा ।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
दोहा
परिभाषा-
दोहा
अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इस छंद के प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती है।
उदाहरण-
एक मुखी
रुद्राक्ष तो, मिलने हैं आसान।
लेकिन दुर्लभ जगत में, एक मुखी इंसान।।
सबके पूजा-पाठ के, अलग-अलग
हैं ढंग।
पन्थ भले ही भिन्न
हों, भारत के सब अंग।।
सोरठा
परिभाषा-
दोहे का
उल्टा रूप सोरठा कहलाता है। यह एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इस छंद के प्रथम और
त्रितीय चरण में 11-11 मात्राएँ
तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 13-13 मात्राएँ
होती हैं।
उदाहरण-
रहना सदा उदार, कट्टरपन्थी
मत बनो।
करना सोच-विचार, अन्धभक्ति
से पूर्व ही।।
कहते हैं विद्वान, मन
में श्रद्धा हो भरी।
दुनिया में भगवान, लेकिन
है सबसे बड़ा।।
रोला
परिभाषा-
यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमे चार चरण
होते है जिसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ
होती है तथा 11 और 13 मात्राओं पर यति होता हैं।
उदाहरण-
राजनीति का खेल खेलते निपट अनाड़ी।
जो
जीता वो ही कहलाता बड़ा खिलाड़ी।।
कह
मयंक कविराय सियासत है दुखदायी।
कभी
मिलन की घड़ी और है कभी जुदायी।।
कुण्डलिया
परिभाषा-
यह विषम
मात्रिक एवं संयुक्त छंद है। इस छंद का निर्माण दोहा और रोल के संयोग से होता
है। इसमें 6 चरण होते है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है।
उदाहरण-
खिड़की खोली जब
सुबह, आया सुखद
समीर।
उपवन में मुझको दिखा, मोती जैसा नीर।। मोती जैसा नीर, घास पर चमक रहा है। सूरज की किरणों में, हीरक दमक रहा है।। कह मयंक कविराय, शीत देता था झिड़की। रवि का है सन्देश, खोल दो मन की खिड़की।।
हरिगीतिका
परिभाषा-
यह एक सम
मात्रिक छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है तथा 16 और 12 मात्रा पर
यति होता है।
उदाहरण-
“मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।”
गीतिका
यह मात्रिक छंद होता है। इसके चार चरण
होते हैं। हर चरण में 14 और 12
के करण से
26 मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु और गुरु होता है।
उदाहरण-
“हे प्रभो
आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र
सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए
हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।”
बरवै
परिभाषा-
यह एक अर्द्धसम मात्रिक छंद
है। इसमे चार चरण होते है। इस छंद में कुल 38 मात्राएँ होती है। इसके प्रथम
और तृतीय चरण में 12 तथा द्वितीय और चतुर्थ चरणों मे 7 मात्राएँ होती है। (मात्राएं गिनते समय ध्यान रखें कि
संयुक्त अक्षर के पहले की मात्रा दीर्घ हो जाती है।)
उदाहरण-
तुलसी दास जी का एक लघु ग्रन्थ है जिसका बरवै रामायण नाम है।
इसके कुछ अंश बरवै स्मृति से दे रहा हूँ।
चम्पक हरवा उर
मिलि, अधिक सोहाय।
जानि परै सिय
हियरे कि, जब कुम्हिलाय।।
सम सुबरन सुषमाकर, सुखद न थोर।
सीय अंग सखि कोमल, कनक कठोर।।
मित्रों!
यदि समय मिला तो
कुछ और छन्दों के बारे में भी लिखूँगा।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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शनिवार, 8 अगस्त 2020
"मात्रिक छन्दों के बारे में कुछ जानकारियाँ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आदरणीय सर , बहुत बहुत आभार इस उपयोगी लेख के लिए | मुझे भी मात्रिक छंद की जानकारी नहीं थी | पुनः आभार और सादर प्रणाम |
जवाब देंहटाएंउपयोगी व जानकारी युक्त लेख ! आभार
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
जानकारी बढ़ाता सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंछंद विधा पर अत्यंत सुरुचिपूर्ण और ज्ञानवर्धक आलेख। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं