-- जीवन के दो चक्र हैं, सुख-दुख जिनके नाम। दोनों ही हालात में, धीरज से लो काम।। -- सरल सुभाव अगर नहीं, धर्म-कर्म सब व्यर्थ। वक्र स्वभाव मनुष्य का, करता सदा अनर्थ।। -- जीवन प्रहसन के सभी, इस दुनिया में पात्र। सबका जीवन है यहाँ, चार दिनों का मात्र।। -- छन्द-शास्त्र गायब हुए, मुक्त हुआ साहित्य। गीत और संगीत में, नहीं रहा लालित्य।। -- रत्तीभर चक्खा नहीं, लिया नहीं आनन्द। छत्ते में डाका पड़ा, लुटा सभी मकरन्द।। -- जिनकों फूलों ने दिये, घाव हजारों बार। काँटों पर उनको भला, कैसे हो इतबार।। -- हरे-भरे हों पेड़ सब, छाया दें घनघोर। उपवन में हँसते सुमन, सबको करें विभोर।। -- |
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मंगलवार, 17 नवंबर 2020
दोहे "लुटा सभी मकरन्द" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक चिंतन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbehatreen rachna hai, bahut sundar Times of MP
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