आसमान का छोर, तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है, नीलगगन में ऊँची उड़ती जाती है, होती भावविभोर तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- वसुन्धरा की प्यास बुझाती है गंगा, पावन गंगाजल करता तन-मन चंगा, सरगम का मृदु शोर तुम्हारे हाथों में।। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- उपवन में कलिकाएँ जब मुस्काती हैं, भ्रमर और तितली को महक सुहाती है, जीवन की है भोर तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- प्रणय-प्रेम के बिना अधूरी पावस है, बिन “मयंक” के छायी घोर अमावस है, चन्दा और चकोर तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- |
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शुक्रवार, 27 नवंबर 2020
गीत "आसमान का छोर, तुम्हारे हाथों में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२८-११-२०२०) को 'दर्पण दर्शन'(चर्चा अंक- ३८९९ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
बेहतरीन गीत आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआसमान का छोर, तुम्हारे हाथों में।
जवाब देंहटाएंकनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।..।
'कनकइया' शब्द का लाजवाब प्रयोग। नमन है आपको 🙏
लाजवाब रचना सर!
जवाब देंहटाएंप्रणय-प्रेम के बिना अधूरी पावस है,
जवाब देंहटाएंबिन “मयंक” के छायी घोर अमावस है,
चन्दा और चकोर तुम्हारे हाथों में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।
वाह!!!!
बहुत ही सुन्दर गीत।
लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है,
जवाब देंहटाएंनीलगगन में ऊँची उड़ती जाती है,
होती भावविभोर तुम्हारे हाथों में।
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।
सुंदर रचना
चन्दा और चकोर तुम्हारे हाथों में।
जवाब देंहटाएंकनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।
सुन्दर रचना - - नमन सह।
बहुत सुंदर भाव मुग्ध करता अप्रतिम सृजन।
जवाब देंहटाएं