-- अब समय आ गया सुखनवरो! अपने शब्दों में धार भरो। सोई चेतना जगाने को, जनमानस में हुंकार भरो।। -- अनुबन्धों में भी मक्कारी, सम्बन्ध बन गये व्यापारी। जननायक करते गद्दारी, लाचारी में दुनिया सारी। अब नहीं समय शीतलता का, मलयानिल में अंगार भरो। सोई चेतना जगाने को, जनमानस में हुंकार भरो।। -- है उपासना वासनायुक्त, करना इसको वासनामुक्त। कायरता का है उदयकाल, हो गयी वीरता आज लुप्त। अब पैन बाण सा पैना कर, गांडीव उठा टंकार करो। सोई चेतना जगाने को, जनमानस में हुंकार भरो।। -- मत उत्तेजक शृंगार करो, मिश्री जैसा मत प्यार करो। छन्दों की सबल इमारत में, मानवता का आधार धरो। निज “रूप” पुरातन पहचानो, फिर से वीणा झंकार करो। सोई चेतना जगाने को, जनमानस में हुंकार भरो।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021
गीत "अपने शब्दों में धार भरो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही जोशपूर्ण तथा सार्थक संदेश भरी रचना । हमेशा की तरह समसामयिक भी ।सादर शुभकामनाएं ।
वाह। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंजनमानस में नवीन ऊर्जा का संचार करने वाला गीत...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद आदरणीय 🙏
इस ओजस्वी गीत को पढ़कर नस-नस में ऊर्जा प्रवाहित हो गई शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंओजपूर्ण सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंजनचेतना के लिए हुंकार जरुरी है
जवाब देंहटाएंओज भरा आह्वान करता सुंदर सृजन आदरणीय।
जवाब देंहटाएंजन-जन में जागरूकता आते सभी चाहते हैं पर मशाल जलाकर निकलता कौन है।
सादर।