प्यार को मनाने को, रार भी जरूरी है -- घूमते हैं मनचले अलिन्द बाग में बहुत फूल को बचाने को, ख़ार भी जरूरी है -- जंग लगे शस्त्र से, युद्ध में विजय कहाँ शौर्य को दिखाने को, धार भी जरूरी है -- कुम्भ को कुम्हार. थाप मार-मार पीटता शिष्य को सिखाने को, मार भी जरूरी है -- मन का मोर नाचता है, डंके की चोट से ढोल को बजाने को, वार भी जरूरी है -- चुगलखोर के बिना, बात फैलती नहीं शोर को मचाने को, स्यार भी जरूरी है -- रूपसी को ‘रूप’ की, सराहना भी चाहिए हुस्न को दिखाने को, यार भी जरूरी है -- |
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सोमवार, 5 अप्रैल 2021
ग़ज़ल "हार भी जरूरी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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रूपसी को ‘रूप’ की, सराहना भी चाहिए
जवाब देंहटाएंहुस्न को दिखाने को, यार भी जरूरी है
जीत को पचाने को, हार भी जरूरी है
प्यार को मनाने को, रार भी जरूरी है
अर्थ ,भाव और यथार्थ मूलक चित्रण की त्रिवेणी हैं ये दोहे रूप चंद शास्त्री जी के ,नायाब बेहतरीन अर्थ गाम्भीर्य लिए सौदेश्य दोहे।
खेला होबे खूब यहां किसे एतराज है ,साधने को काम राम नाम भी ज़रूरी।
जीत को पचाने को, हार भी जरूरी है
जवाब देंहटाएंप्यार को मनाने को, रार भी जरूरी है
शानदार ग़ज़ल...
दोहा, गीत और ग़ज़ल ... सभी में आपको महारत हासिल है आदरणीय... साधुवाद 🙏
सादर शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
आप चाहें गीत लिखें या ग़ज़ल, उसका उत्कृष्ट होना निश्चित है शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,आपकी रचना पढ़कर आनंद आ गया,बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंचुगलखोर के बिना, बात फैलती नहीं
जवाब देंहटाएंशोर को मचाने को, स्यार भी जरूरी है
वाह!!!!
एक से बढ़कर एक लाजवाब दोहे।
सुन्दर सार्थक और लाजवाब दोहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंवाह उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन आदरणीय।
बेहद सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंआप जो भी लिखे हैं, गजब का लिखते हैं
जवाब देंहटाएंआपकी सोच को प्रणाम
सादर