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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021
दोहे "मैं भगवा का समर्थक, मन का बहुत उदार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ईश्वर अल्ला एक हैं, ओम कहो या राम।
जवाब देंहटाएंआने जाने का यहाँ, होता एक मुकाम।।
बहुत सुंदर दोहे
साधुवाद 🙏
आपने सच्चाई बयान की है आदरणीय शास्त्री जी। यह रचना सीधे आपके अंतस से फूटकर बाहर प्रवाहित हुई है। अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत यथार्थपूर्ण तथा समसामयिक दोहे । आपको हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं--
मैं भगवा का समर्थक, मन का बहुत उदार।
आँख मूँद करता नहीं, नियम-नीति स्वीकार।।
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सच्चे मन से चाहता, करे भाजपा राज।
लेकिन सही सुझाव हैं, हों जनहित के काज।।
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ईश्वर अल्ला एक हैं, ओम कहो या राम।
आने जाने का यहाँ, होता एक मुकाम।।
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बनी बोलियाँ गोलियाँ, बरसाती पाषाण।
दादा प्रतिदिन दागते, दीदी जी पर बाण।।
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निर्वाचन में हो भले, किसी पक्ष की हार।
किन्तु अकेली झेलती, दीदी सारे वार।।
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आहत निबल-गरीब के, मुख से निकले आह।
महँगाई की है नहीं, सत्ता को परवाह।।
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सात साल से मिल रहा, महँगाई उपहार।
जनता को भरमा रही, भगवा की सरकार।।
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सत्ता-सिंहासन गये, है इतिहास गवाह।
ज्यादा दिन टिकता नहीं, कोई तानाशाह।।
सार्थक प्रासंगिक दोहावली आज के राजनीतिक परिदृश्य के सारूप जी की -
बहुत प्रभावशाली दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे !
जवाब देंहटाएंईश्वर अल्ला एक हैं, ओम कहो या राम।
जवाब देंहटाएंआने जाने का यहाँ, होता एक मुकाम।।
सत्य वचन,सुंदर दोहे आदरणीय सर,सादर नमन आपको
वाह 'मयंक' जी !
जवाब देंहटाएंचाशनी में लपेट-लपेट कर अच्छी-अच्छी चिपका रहे हैं आप !
सात साल के राम-राज्य का कच्चा-चिटठा खोल भी दिया और ख़ुद को भगवा समर्थक भी कह दिया !
बहुत सुंदर दोहे आदरणीय।
जवाब देंहटाएंमन के आंदोलन को लेखन में उतारा है आपने सुंदरता से ।
जवाब देंहटाएंसटीक सार्थक सृजन।