क्या कभी आपने विचार किया है कि हम हिन्दुस्तानियों की हिन्दी खराब क्यों है? इसका मुख्य कारण है कि हमें अपनी हिन्दी के व्याकरण का सम्यक ज्ञान नहीं है। -- तो आइए बाते करें हिन्दी व्याकरण की- हिन्दी
व्याकरण हिन्दी भाषा को शुद्ध रूप से लिखने और बोलने सम्बन्धी नियमों का बोध
कराने वाला शास्त्र है। यह हिन्दी भाषा के अध्ययन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इसमें हिन्दी के सभी स्वरूपों को चार खण्डों के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है।
इसमें वर्ण विचार के अन्तर्गत वर्ण और ध्वनि पर विचार किया गया है तो शब्द विचार
के अन्तर्गत शब्द के विविध पक्षों से सम्बन्धित नियमों पर विचार किया गया
है। वाक्य विचार के अन्तर्गत वाक्य सम्बन्धी विभिन्न स्थितियों एवं छन्द विचार
में साहित्यिक रचनाओं के शिल्पगत पक्षों पर विचार किया गया है। वर्ण विचार वर्ण विचार हिन्दी व्याकरण का पहला खण्ड है जिसमें भाषा की मूल इकाई
वर्ण और ध्वनि पर विचार किया जाता है। इसके अन्तर्गत हिन्दी के मूल अक्षरों की
परिभाषा, भेद-उपभेद, उच्चारण संयोग, वर्णमाला, आदि नियमों का वर्णन होता है। वर्ण हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है। देवनागरी वर्णमाला में कुल ५२ अक्षर
हैं, जिनमें से १६ स्वर हैं और ३६ व्यञ्जन। स्वर हिन्दी
भाषा में मूल रूप से ग्यारह स्वर होते हैं। ये ग्यारह स्वर निम्नलिखित हैं। ग्यारह स्वर के वर्ण : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ आदि। हिन्दी भाषा में ऋ को आधा स्वर (अर्धस्वर) माना जाता है,अतः इसे स्वर में शामिल किया गया है। हिन्दी भाषा में प्रायः ॠ और ऌ का प्रयोग नहीं होता। अं और अः को भी
स्वर में नहीं गिना जाता। इसलिये हम कह सकते हैं कि हिन्दी में 11 स्वर होते हैं। यदि ऍ, ऑ नाम की विदेशी ध्वनियों को शामिल करें तो
हिन्दी में 11+2=13 स्वर होते हैं, फिर भी 11 स्वर हिन्दी में मूलभूत हैं.
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ऍ ऑ (हिन्दी में ॠ ऌ का
प्रयोग प्रायः नहीं होता तथा ऍ ऑ का प्रयोग विदेशी ध्वनियों को दर्शाने के लिए
होता है।) शब्द विचार शब्द और उसके भेद
शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा खण्ड है जिसके अन्तर्गत
शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, सन्धि, विच्छेद, रूपान्तरण, निर्माण आदि से सम्बन्धित नियमों पर विचार किया
जाता है। शब्द वर्णों या अक्षरों के सार्थक समूह को कहते हैं।
उदाहरण के लिए क, म तथा ल के मेल से 'कमल' बनता है जो एक खास किस्म के फूल का बोध कराता है।
अतः 'कमल' एक शब्द है
कमल की ही तरह 'लकम' भी इन्हीं तीन अक्षरों का समूह है किन्तु यह किसी
अर्थ का बोध नहीं कराता है। इसलिए यह शब्द नहीं है। व्याकरण के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं- विकारी और अविकारी या
अव्यय। विकारी शब्दों को चार भागों में बाँटा गया है- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। अविकारी शब्द या अव्यय भी चार
प्रकार के होते हैं- क्रिया विशेषण, सम्बन्धबोधक, संयोजक और विस्मयादिबोधक इस प्रकार सब मिलाकर
निम्नलिखित 8 प्रकार के शब्द-भेद होते हैं: संज्ञा किसी भी नाम, जगह, व्यक्ति विशेष अथवा स्थान आदि बताने वाले शब्द को
संज्ञा कहते हैं। उदाहरण - राम, भारत, हिमालय, गंगा, मेज़, कुर्सी, बिस्तर, चादर, शेर, भालू, साँप, बिच्छू आदि। संज्ञा के भेद संज्ञा के कुल ६ भेद बताये
गए हैं- १-व्यक्तिवाचक:
जैसे राम, भारत, सूर्य आदि। २-जातिवाचक:
जैसे बकरी, पहाड़, कंप्यूटर आदि। ३-समूह
वाचक: जैसे कक्षा, बारात, भीड़, झुंड आदि। ४-द्रव्य
वाचक: जैसे पानी, लोहा, मिट्टी, खाद या उर्वरक आदि। ५-संख्या
वाचक: जैसे दर्जन, जोड़ा, पांच, हज़ार आदि। ६-भाववाचक:
जैसे ममता, बुढापा आदि। सर्वनाम संज्ञा के बदले में आने वाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं। उदाहरण - मैं, तुम, आप, वह, वे आदि।
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम
कहते है। संज्ञा की पुनरुक्ति न करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।
जैसे - मैं, तू, तुम, आप, वह, वे आदि।
सर्वनाम सार्थक शब्दों के आठ भेदों में एक भेद है।
व्याकरण में सर्वनाम एक विकारी शब्द है। सर्वनाम के भेद सर्वनाम
के छह प्रकार के भेद हैं- पुरुषवाचक (व्यक्तिवाचक) सर्वनाम। निश्चयवाचक सर्वनाम। अनिश्चयवाचक सर्वनाम। संबन्धवाचक सर्वनाम। प्रश्नवाचक सर्वनाम। निजवाचक सर्वनाम।
जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता या लेखक द्वारा स्वयं
अपने लिए अथवा किसी अन्य के लिए किया जाता है, वह 'पुरुषवाचक (व्यक्तिवाचक्) सर्वनाम' कहलाता है। पुरुषवाचक (व्यक्तिवाचक) सर्वनाम तीन
प्रकार के होते हैं- उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला स्वयं के लिए
करता है, उसे उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहा जाता है। जैसे - मैं, हम, मुझे, हमारा आदि। मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला श्रोता के
लिए करे, उसे मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे - तुम, तुझे, तुम्हारा आदि। अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला श्रोता
के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के लिए करे, उसे अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- वह, वे, उसने, यह, ये, इसने, आदि। निश्चयवाचक सर्वनाम जो
(शब्द) सर्वनाम किसी व्यक्ति, वस्तु आदि की ओर निश्चयपूर्वक संकेत करें वे
निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- ‘यह’, ‘वह’, ‘वे’ सर्वनाम शब्द किसी विशेष व्यक्ति का निश्चयपूर्वक
बोध करा रहे हैं, अतः ये निश्चयवाचक सर्वनाम हैं। उदाहरण- यह बस्ता रामू का है ये पुस्तकें रानी की हैं। वह सड़क पर कौन आ रहा है। वे सड़क पर कौन आ रहे हैं। अनिश्चयवाचक सर्वनाम जिन
सर्वनाम शब्दों के द्वारा किसी निश्चित व्यक्ति अथवा वस्तु का बोध न हो वे
अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- ‘कोई’ और ‘कुछ’ आदि सर्वनाम शब्द। इनसे किसी विशेष व्यक्ति अथवा
वस्तु का निश्चय नहीं हो रहा है। अतः ऐसे शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। उदाहरण- द्वार पर कोई खड़ा है। कुछ पत्र देख लिए गए हैं और कुछ देखने हैं। सम्बन्धवाचक सर्वनाम परस्पर
सबन्ध बतलाने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है उन्हें संबन्धवाचक सर्वनाम
कहते हैं। जैसे- ‘जो’, ‘वह’, ‘जिसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘वैसा’ आदि। उदाहरण- जो सोएगा, सो खोएगा; जो जागेगा, सो पावेगा। जैसी करनी, तैसी पार उतरनी। प्रश्नवाचक सर्वनाम जो
सर्वनाम संज्ञा शब्दों के स्थान पर भी आते है और वाक्य को प्रश्नवाचक भी बनाते
हैं, वे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- क्या, कौन आदि। उदाहरण- तुम्हारे घर कौन आया है? दिल्ली से क्या मँगाना है? निजवाचक सर्वनाम जहाँ
स्वयं के लिए ‘आप’, ‘अपना’ अथवा ‘अपने’, ‘आप’ शब्द का प्रयोग हो वहाँ निजवाचक सर्वनाम होता है।
इनमें ‘अपना’ और ‘आप’ शब्द उत्तम, पुरुष मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के (स्वयं का)
अपने आप का ज्ञान करा रहे शब्द हें जिन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। विशेष जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग श्रोता के लिए हो वहाँ यह
आदर-सूचक मध्यम पुरुष होता है और जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग अपने लिए हो वहाँ निजवाचक होता
है। उदाहरण- राम अपने दादा को समझाता है। श्यामा आप ही दिल्ली चली गई। राधा अपनी सहेली के घर गई है। सीता ने अपना मकान बेच दिया है। सर्वनाम शब्दों के विशेष प्रयोग आप, वे, ये, हम, तुम शब्द बहुवचन के रूप में हैं, किन्तु आदर प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग एक
व्यक्ति के लिए भी किया जाता है। ‘आप’ शब्द स्वयं के अर्थ में भी प्रयुक्त हो जाता है।
जैसे- मैं यह कार्य आप ही कर लूँगा। विशेषण
संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द को
विशेषण कहते हैं। उदाहरण - 'हिमालय
एक विशाल पर्वत है।' यहाँ "विशाल" शब्द "हिमालय"
की विशेषता बताता है इसलिए वह विशेषण है। विशेषण के भेद संख्यावाचक विशेषण मुझे 5 अंक चाहिए। परिमाणवाचक विशेषण एक किलो चीनी दीजिए। गुणवाचक विशेषण हिमालय एक विशाल पर्वत है सार्वनामिक विशेषण मेरी बहन हैं। क्रिया कार्य
का बोध कराने वाले शब्द को क्रिया कहते हैं। उदाहरण - आना, जाना, होना, पढ़ना, लिखना, रोना, हंसना, गाना आदि। क्रियाएं दो प्रकार की होतीं हैं- १-सकर्मक क्रिया, २-अकर्मक क्रिया। सकर्मक
क्रिया: जिस
क्रिया में कोई कर्म (ऑब्जेक्ट) होता है उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। उदाहरण -
खाना, पीना, लिखना आदि। बन्दर
केला खाता है। इस वाक्य में 'क्या' का उत्तर 'केला' है। अकर्मक
क्रिया: इसमें
कोई कर्म नहीं होता। उदाहरण - हंसना, रोना आदि। बच्चा रोता है। इस वाक्य में 'क्या' का उत्तर उपलब्ध नहीं है। क्रिया का लिंग एवं काल: क्रिया का लिंग कर्ता के लिंग के अनुसार होता है। उदाहरण - रोना : लड़का
रोता है। लड़की रोती है। लड़का रोता था। लड़की रोती थी। लड़का रोएगा । लडकी
रोएगी।
मुख्य क्रिया के साथ आकर काम के होने या किए जाने का
बोध कराने वाली क्रियाएं सहायक क्रियाएं कहलाती हैं। जैसे - है, था, गा, होंगे आदि शब्द सहायक क्रियाएँ हैं।
सहायक क्रिया के प्रयोग से वाक्य का अर्थ और अधिक
स्पष्ट हो जाता है। इससे वाक्य के काल का तथा कार्य के जारी होने, पूर्ण हो चुकने अथवा आरंभ न होने कि स्थिति का भी
पता चलता है। उदाहरण – मैं जा रहा हूँ। (वर्तमान काल जारी)। मैं जाऊँगा।(भविष्य
काल पूर्ण)। क्रिया विशेषण किसी भी क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द को क्रिया विशेषण कहते
हैं। उदाहरण - 'मोहन मुरली की अपेक्षा कम पढ़ता है।' यहाँ "कम" शब्द "पढ़ने"
(क्रिया) की विशेषता बताता है इसलिए वह क्रिया विशेषण है। 'मोहन बहुत तेज़ चलता है।' यहाँ "बहुत" शब्द "चलना"
(क्रिया) की विशेषता बताता है इसलिए यह क्रिया विशेषण है। 'मोहन मुरली की अपेक्षा बहुत कम पढ़ता है।' यहाँ "बहुत" शब्द "कम"
(क्रिया विशेषण) की विशेषता बताता है इसलिए वह क्रिया विशेषण है। क्रिया विशेषण के भेद: 1. रीतिवाचक क्रिया विशेषण : मोहन ने अचानक कहा। 2. कालवाचक क्रिया विशेषण : मोहन ने कल कहा था। 3. स्थानवाचक क्रिया विशेषण : मोहन यहाँ आया था। 4. परिमाणवाचक क्रिया विशेषण : मोहन कम बोलता है। समुच्चय बोधक दो
शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले संयोजक शब्द को समुच्चय बोधक कहते हैं। उदाहरण
- 'मोहन और सोहन एक ही शाला में पढ़ते हैं।' यहाँ "और" शब्द "मोहन" तथा
"सोहन" को आपस में जोड़ता है इसलिए यह संयोजक है। 'मोहन या सोहन में से कोई एक ही कक्षा कप्तान
बनेगा।' यहाँ "या" शब्द "मोहन" तथा "सोहन" को
आपस में जोड़ता है इसलिए यह संयोजक है। विस्मयादि बोधक विस्मय प्रकट करने वाले शब्द को विस्मायादिबोधक कहते हैं। उदाहरण - अरे! मैं तो भूल ही गया था कि आज मेरा जन्म दिन है। यहाँ
"अरे" शब्द से विस्मय का बोध होता है अतः यह विस्मयादिबोधक है। पुरुष एकवचन, बहुवचन उत्तम पुरुष मैं हम मध्यम पुरुष तुम तुम लोग / तुम सब अन्य पुरुष यह ये वह वे / वे लोग आप आप लोग / आप सब हिन्दी में तीन पुरुष होते हैं- उत्तम पुरुष- मैं, हम मध्यम पुरुष - तुम, आप अन्य पुरुष- वह, राम आदि उत्तम पुरुष में मैं और हम शब्द का प्रयोग होता है , जिसमें हम का प्रयोग एकवचन और बहुवचन दोनों के
रूप में होता है । इस प्रकार हम उत्तम पुरुष एकवचन भी है और बहुवचन भी है । मिसाल
के तौर पर यदि ऐसा कहा जाए कि "हम सब भारतवासी हैं" , तो यहाँ हम बहुवचन है और अगर ऐसा लिखा जाए कि
"हम विद्युत के कार्य में निपुण हैं" , तो यहाँ हम एकवचन के रुप में भी है और बहुवचन के
रूप में भी है । हमको सिर्फ़ तुमसे प्यार है - इस वाक्य में देखें तो , "हम" एकवचन के रुप में प्रयुक्त हुआ है । वक्ता
अपने आपको मान देने के लिए भी एकवचन के रूप में हम का प्रयोग करते हैं । लेखक भी
कई बार अपने बारे में कहने के लिए हम शब्द का प्रयोग एकवचन के रुप में अपने लेख
में करते हैं । इस प्रकार हम एक एकवचन के रुप में मानवाचक सर्वनाम भी है । वचन हिन्दी
में दो वचन होते हैं: एकवचन- जैसे राम, मैं, काला, आदि एकवचन में हैं। बहुवचन- हम लोग, वे लोग, सारे प्राणी, पेड़ों आदि बहुवचन में हैं। लिंग हिन्दी
में सिर्फ़ दो ही लिंग होते हैं: स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। कोई वस्तु या जानवर या
वनस्पति या भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग, इसका ज्ञान अभ्यास से होता है। कभी-कभी संज्ञा के
अन्त-स्वर से भी इसका पता चल जाता है। पुल्लिंग- पुरुष जाति के लिए प्रयुक्त शब्द पुल्लिंग में कहे जाते हैं। जैसे -
अजय, बैल, जाता है आदि स्त्रीलिंग- स्त्री जाति के बोधक शब्द जैसे- निर्मला, चींटी, पहाड़ी, खेलती है,काली बकरी दूध देती है आदि। कारक कारक
आठ होते हैं। कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबन्ध, अधिकरण, संबोधन। किसी भी वाक्य के सभी शब्दों को इन्हीं ८ कारकों में वर्गीकृत किया
जा सकता है। उदाहरण- राम ने अमरूद खाया। यहाँ 'राम' कर्ता है, 'अमरूद' कर्म है। सम्बन्ध बोधक दो वस्तुओं के मध्य संबन्ध बताने वाले शब्द को सम्बन्धकारक कहते
हैं। उदाहरण - 'यह
मोहन की पुस्तक है।' यहाँ "की" शब्द "मोहन" और
"पुस्तक" में संबन्ध बताता है इसलिए यह संबन्धकारक है। उपसर्ग वे
शब्द जो किसी दूसरे शब्द के आरम्भ में लगाये जाते हैं। इनके लगाने से शब्दों के
अर्थ परिवर्तन या विशिष्टता आ सकती है। प्र+ मोद = प्रमोद, सु + शील = सुशील उपसर्ग
प्रकृति से परतंत्र होते हैँ। उपसर्ग चार प्रकार के होते हैँ - 1) संस्कृत से आए हुए उपसर्ग, 2) कुछ अव्यय जो उपसर्गों की तरह प्रयुक्त होते है, 3) हिन्दी के अपने उपसर्ग (तद्भव), 4) विदेशी भाषा से आए हुए उपसर्ग। प्रत्यय वे
शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं , उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वाला)
कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन। सन्धि दो
शब्दों के पास-पास होने पर उनको जोड़ देने को सन्धि कहते हैं। जैसे- सूर्य + उदय
= सूर्योदय, अति + आवश्यक = अत्यावश्यक, संन्यासी = सम् + न्यासी समास दो शब्द आपस में मिलकर एक समस्त पद की रचना करते हैं।
जैसे-राज+पुत्र = राजपुत्र, छोटे+बड़े = छोटे-बड़े आदि समास छ: होते हैं: द्वन्द, द्विगु, तत्पुरुष, कर्मधारय, अव्ययीभाव और बहुब्रीहि । वाक्य विचार वाक्य
विचार हिंदी व्याकरण का तीसरा खण्ड है जिसमें वाक्य की परिभाषा, भेद-उपभेद, संरचना आदि से सम्बन्धित नियमों पर विचार किया
जाता है। वाक्य और वाक्य के भेद शब्दों
के समूह को जिसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है, वाक्य कहते हैं। वाक्य के दो अनिवार्य तत्त्व
होते हैं- उद्देश्य और विधेय जिसके
बारे में बात की जाय उसे उद्देश्य कहते हैं और जो बात की जाय उसे विधेय कहते
हैं। उदाहरण के लिए मोहन प्रयाग में रहता है। इसमें उद्देश्य- मोहन है, और विधेय है- प्रयाग में रहता है। वाक्य भेद दो
प्रकार से किए जा सकते हँ- १- अर्थ के आधार पर वाक्य भेद २- रचना के आधार पर वाक्य भेद आठ प्रकार के वाक्य होते हँ- १-विधान वाचक वाक्य, २- निषेधवाचक वाक्य, ३- प्रश्नवाचक वाक्य, ४- विस्म्यादिवाचक वाक्य, ५- आज्ञावाचक वाक्य, ६- इच्छावाचक वाक्य, ७- संदेहवाचक वाक्य। काल और काल के भेद वाक्य
तीन काल में से किसी एक में हो सकते हैं: वर्तमान काल जैसे मैं खेलने जा रहा हूँ। भूतकाल "स्वतन्त्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार" लोकमान्य बाल गंगाधर
तिलक ने कहा था और भविष्य काल जैसे अगले मंगलवार को मैं नानी के घर जाउँगा। वर्तमान काल के तीन भेद होते हैं- सामान्य वर्तमान काल, संदिग्ध वर्तमानकाल तथा अपूर्ण वर्तमान काल। भूतकाल के भी छः भेद होते हैं- समान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत, अपूर्ण भूत, संदिग्ध भूत और हेतुमद भूत। भविष्य काल के दो भेद होते हैं- सामान्य भविष्यकाल और संभाव्य भविष्यकाल |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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बुधवार, 1 दिसंबर 2021
आलेख "हमारी हिन्दी खराब क्यों है?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०२ -१२ -२०२१) को
'हमारी हिन्दी'(चर्चा अंक-४२६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हिंदी व्याकरण की सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंफिर भी शब्द दो प्रकार के होते हैं
1-सार्थक शब्द जैसे कलम आदि।
2-निरर्थक शब्द जैसे लकम ,मकल आदि।
धन्यवाद।
अति सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय हिंदी व्याकरण का सांगोपांग विवेचन आभार आपका
जवाब देंहटाएं