संगी-साथी साथी हो जीवन की।। तुमसे ही मेरा घर-घर है, सपनों का आबाद नगर है, सुख-दुख में हो साथ निभाती, तुलसी हो मेरे आँगन की। संगी-साथी साथी हो जीवन की।। कोयल सी तुम चहक रही हो, जूही सी तुम महक रही हो, नेह सुधा सरसाने वाली, घन चपला हो तुम सावन की। संगी-साथी साथी हो जीवन की।। तुम शीतल बयार मतवाली, तुम हो नैसर्गिक हरियाली, जंगल चमन बनाया तुमने, तुम आभा-शोभा कानन की। संगी-साथी साथी हो जीवन की।। तुम हो प्यारे मीत हमारे, तुम पर गीत रचे हैं सारे, नाती-पोतों की किलकारी, याद दिलाती है बचपन की। संगी-साथी साथी हो जीवन की।। युग बीता चालिस सालों का, अब चाँदी सा रँग बालों का, प्रणयदिवस के महापर्व पर, यादें वाबस्ता यौवन की। संगी-साथी साथी हो जीवन की।। अमर भारती नाम तुम्हारा, “रूप” बहुत लगता है प्यारा, मैं मन का मतवाला पंछी, तुम अब भी हो भोले मन की। संगी-साथी साथी हो जीवन की।। |
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रविवार, 5 दिसंबर 2021
गीत "तुमसे ही मेरा घर-घर है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार
(6-12-21) को
तुमसे ही मेरा घर-घर है" (चर्चा अंक4270)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक शुभकामनाएं ।आपको हार्दिक बधाई और अच्छे सुखद दाम्पत्य जीवन हेतु मंगल शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आदरणीय शास्त्री जी..
जवाब देंहटाएंअति सुंदर उपहार! बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
वैवाहिक सुखमय जीवन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंजीवन साथी को समर्पित बहुत लाजवाब सृजन ।
मृदुल शृंगार से ओतप्रोत।
सादर।