ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे ये गुस्साल ऐसे कफन बेच देंगे (गुस्साल-मुर्दों को नहलाने वाले) बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे सदाकत से इनको बिठाया जहाँ पर ये वो देश की अंजुमन बेच देंगे लिबासों में मीनों के मोटे मगर हैं, समन्दर की ये मौज-ए-जन बेच देंगे सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे (कोह-पर्वत, सहरा-जंगल, वन) जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे उस्तादी अहद-ए-कुहन=विश्व गुरु का दर्जा नक्श-ए-कुहन=प्राचीन नक्शा लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे अगर इनके वश में हो वारिस जहाँ का ये उसके हुनर और फन बेच देंगे जुलम-जोर शायर पे हो गर्चे इनका ये उसके भी शेर-औ-सुखन बेच देंगे ‘मयंक’ दाग दामन में इनके बहुत हैं ये अपने ही परिजन-स्वजन बेच देंगे |
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शनिवार, 5 मार्च 2022
ग़ज़ल "देश की अंजुमन बेच देंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (06 मार्च 2022 ) को 'ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे' (चर्चा अंक 4361) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव