राधाकृष्णन के हुए, सारे सपने चूर। जगत गुरू के लक्ष्य से, आज हुए हम दूर।। -- सद्गुरु अपने देश में, सोये चादर तान। नगर-गाँव में चल रहीं, शिक्षा की दूकान।। -- बाँट रहे अनपढ़ जहाँ, गली-गली में ज्ञान। ज्ञान-सूर्य का गगन में, हुआ आज अवसान।। -- भारत के परिवेश में, लगे बदनुमा दाग। पश्चिम के अनुकरण का, करना होगा त्याग।। -- शालाओं में आजकल, पसरा है अज्ञान। कैसे होगा फिर यहाँ, शिक्षा का उत्थान।। -- गुरुवर-शिष्य अगर करें, मिलकर प्रण यह आज। वेदों के विज्ञान से, बदलें देश-समाज। -- शिक्षक दिन आ गया, बदलें हम परिवेश। जीवन में धारण करें, गुरुओं के उपदेश।। -- शिष्यों अब अज्ञान को, करो नहीं स्वीकार्य। माणिक-मोती ज्ञान के, तब देंगे आचार्य।। -- |
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रविवार, 4 सितंबर 2022
दोहे "शिक्षा का उत्थान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसभी शिक्षकों को सादर नमन
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(०५-०९ -२०२२ ) को 'शिक्षा का उत्थान'(चर्चा अंक-४५४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शालाओं में आजकल, पसरा है अज्ञान।
जवाब देंहटाएंकैसे होगा फिर यहाँ, शिक्षा का उत्थान।।
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गुरुवर-शिष्य अगर करें, मिलकर प्रण यह आज।
वेदों के विज्ञान से, बदलें देश-समाज।
..शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सभी गुरुजनों को