-- सिर छिपाने के लिए, इक शामियाना चाहिए प्यार पलता हो जहाँ, वो आशियाना चाहिए -- राजशाही महल हो, या झोंपड़ी हो घास की सुख मिले सबको जहाँ, वो घर बनाना चाहिए -- दाँव भी हैं-पेंच भी हैं, प्यार के इस खेल में इस पतंग को, सावधानी से उड़ाना चाहिए -- मुश्किलों से है भरी, ये ज़िन्दग़ानी की डगर आखिरी लम्हात तक, रिश्ता निभाना चाहिए -- जोड़ना मुश्किल बहुत है, तोड़ना आसान है सभ्यता का आचरण, सबको दिखाना चाहिए -- चार दिन की चाँदनी है, फिर अँधेरी रात है घर सभी का रौशनी से, जगमगाना चाहिए -- आइना दिल का मिला है, देख गर्दन को झुका “रूप” के अभिमान को, अपने हटाना चाहिए -- |
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बुधवार, 7 दिसंबर 2022
ग़ज़ल "घर बनाना चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर गजल....
जवाब देंहटाएंघर सभी का रौशनी से, जगमगाना चाहिए
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ साहब सादर वंदन !
बहुत सरल शब्दों में जीवन जीना सिखाती पंक्तियाँ !
जय श्री कृष्ण जी !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
मुश्किलों से है भरी, ये ज़िन्दग़ानी की डगर
जवाब देंहटाएंआखिरी लम्हात तक, रिश्ता निभाना चाहिए
बहुत सही कहा है आपने
सच जहां ख़ुशी नहीं, सुख नहीं वह घर कैसा! बहुत सही बात
जवाब देंहटाएं