-- उजड़ गया वो बाग, माली गुजर गये। केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।। -- कहाँ गये वो लोग, जिन्होंने चमन सजाये, कहाँ गये वो खेत, जहाँ पर पेड़ लगाये, पुरखों के आधार, जाने किधर गये। केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।। -- रिश्तों में खो गया, सन्तुलन प्यार का, सारहीन हो गया, सूत्र परिवार का, खुशियों के अंबार, जाने किधर गये। केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।। -- खोज रही सन्तान, हाथ उपहार का, युग आया है आज, सिर्फ मनुहार का, तीज और त्यौहार, जाने किधर गये। केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।। -- नहीं रहा नैसर्गिक, ढाँचा प्यार का, बिगड़ गया है ढंग, प्रणय-अभिसार का, मर्य़ादा के तार, जाने किधर गये। केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।। -- मटियामेट किया किसने, पंचम अक्षर आकार का, लुप्त हुआ अस्तित्व, चन्द्रबिन्दु जैसे अनुस्वार का स्वर वीणा झंकार, न जाने किधर गये। केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये।। -- |
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मंगलवार, 11 अप्रैल 2023
गीत "केवल यादें बची, परिन्दे किधर गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर सृजन...
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