-- बदल गये मौसम यहाँ, बदल गयी है रीत। सरगम तो बदली नहीं, बदल गया संगीत।। -- वो पल ही अनमोल हैं, उमड़े जब कुछ नेह। बिना काम होती नहीं, किसी काम की देह।। -- सपनों की सुन्दर फसल, अरमानों का बीज। कल्पनाओं से हो रही, मन में अब तो खीझ।। -- नहीं रहा अब समय वो, नहीं रहे वो मीत। मतलब के संसार में, किसे सुनायें गीत।। -- माँग रहे गुरुदेव है, इतना ही प्रतिदान। जीवनभर करते रहे, चेले उसका मान।। -- सूती कपड़ा है नहीं, करघे हुए अनाथ। चरखे के दिन लद गये, गाँधी जी के साथ।। -- पड़ जायें जब झुर्रियाँ, पक जायें सब बाल। तब जीवन का समझ लो, आया अन्तिम काल।। -- ओस चाटने से कभी, नहीं मिटेगी प्यास। तारों से होती नहीं, जग में कभी उजास।। -- आदिकाल से चल रहा, धूप-छाँव का खेल। चौराहों पर राह का, हो जाता है मेल।। -- |
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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023
दोहे "धूप-छाँव का खेल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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