-- हिमगिरि से हिम पिघलता, चहके चारों धाम। हरि के दर्शनमात्र से, मिटते ताप तमाम।1। सरदी का मौसम गया, हुआ शीत का अन्त। खुशियाँ सबको बाँटकर, वापिस गया बसन्त।2। करता है लू का शमन, खरबूजा-तरबूज। ककड़ी-खीरा बदन को, रखते हैं महफूज।3। माटी की हाँडी चले, और काठ की नाव। देश-काल को परख कर, करना उचित चुनाव।4। लिख करके आलेख को, अनुच्छेद में काट। हल्दी लगे न फिटकरी, कविता बने विराट।5। तितली पंख हिला रही, भँवरा गाता गान। उपवन में मधुमक्खियाँ, छेड़ रहीं हैं तान।6। अन्ना जी की आड़ ले, बनने चले कबीर। ज्यादा दिन चलते नहीं, जग में नाटक-वीर।7। -- |
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रविवार, 30 अप्रैल 2023
दोहे "चहके चारों धाम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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