-- करिये नियम-विधान से, नौ दिन तक उपवास। जगदम्बा माँ आपकी, पूर्ण करेंगी आस।। -- शुद्ध आचरण में रहे, उज्जवल चित्र-चरित्र। प्रतिदिन तन के साथ में, मन को करो पवित्र।। शाकाहारी मनुज ही, पूजा के हैं पात्र। खान-पान में शुद्धता, सिखलाते नवरात्र।। -- माता के नवरात्र हों, या हो कोई पर्व। अपने-अपने पर्व पर, होता सबको गर्व।। -- त्यौहारों की शृंखला, का बन गया सुयोग। मस्ती में उल्लास में, झूम रहे हैं लोग।। -- मत-मजहब का भूल से, मत करना उपहास। होता इनके मूल में, छिपा हुआ इतिहास।। -- त्यौहारों के नाम पर, लोक-दिखावा मात्र। पाश्चात्य परिवेश में, गुम हो गये सुपात्र।। -- करते पाठन-पठन को, विद्यालय में छात्र।। सफल वही होते सदा, जो होते हैं पात्र।। -- |
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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024
दोहे "खान-पान में शुद्धता, सिखलाते नवरात्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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