-- अपनी सजनी से अगर, पाना चाहो प्यार। जीवनभर करते रहो, सालों की मनुहार।। -- होते हैं ससुराल का, साले ही आधार। समय-समय पर बाँटिए, सालों को उपहार।। -- घर का हो गर चाहते, आप शान्त परिवेश। धन पर करने दीजिए, निज सालों को ऐश।। -- साधारण से हों अगर, जीजा के परिधान। मिलता है ससुराल में, बस उसको अपमान।। -- अगर देखना चाहते, दुनिया में मक्कार। मन में आये उभर कर, सालों का आकार।। -- जीवन अपना ढालिए, सालों के अनुसार। सालों से करना नहीं, नोंक-झोंक-तकरार।। -- सतयुग या कलिकाल हो, कहता जीवन शास्त्र। साले जीजा के लिए, रहे दया के पात्र।। -- रूप सुहाना हो भले, आदत में हैं कंस। बगुलों को तो भूल से, समझ न लेना हंस।। -- खान-पान में चाहिए, रोगी को अनुपान। बिन अनुभव बेकार है, दुनियाभर का ज्ञान।। -- |
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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
दोहे "साले हैं उपहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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