अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।। -- विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार। आज झूठ है जीतता, सत्य रहा है हार।। -- रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार। लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।। -- तब से पुतले दहन का, बढ़ता गया रिवाज। मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।। -- आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त। भोली जनता को यहाँ, भरमाते हैं सन्त।। -- दावे करते हैं सभी, बदलेंगे तकदीर। अपनी रोटी सेंकते, राजा और वजीर।। -- मनसा-वाचा-कर्मणा, नहीं सत्य भरपूर। आम आदमी मजे से, आज बहुत है दूर।। -- |
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शनिवार, 12 अक्तूबर 2024
दोहे "विजयादशमी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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