कौन थे? क्या थे? कहाँ हम जा रहे? व्योम में घश्याम क्यों छाया हुआ? भूल कर तम में पुरातन डगर को, कण्टकों में फँस गये असहाय हो, वास करते थे कभी यहाँ पर करोड़ो देवता, देवताओं के नगर का नाम आर्यावर्त था, काल बदला, देव से मानव कहाये, ठीक था, कुछ भी नही अवसाद था, किन्तु अब मानव से दानव बन गये, खो गयी जाने कहाँ? प्राचीनता, मूल्य मानव के सभी तो मिट गये, शारदा में पंक है आया हुआ, हे प्रभो! इस आदमी को देख लो, लिप्त है इसमे बहुत शैतानियत, आज परिवर्तन हुआ कैसा घना, हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 28 अप्रैल 2010
‘‘प्रश्न जाल’’ ‘‘चम्पू छन्द’’ (डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
काल बदला, देव से मानव कहाये,
जवाब देंहटाएंठीक था, कुछ भी नही अवसाद था,
किन्तु अब मानव से दानव बन गये,
खो गयी जाने कहाँ? प्राचीनता
सच्चाई को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ! हमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना!
शास्त्री जी सुंदर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और अच्छी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआज परिवर्तन हुआ कैसा घना,
जवाब देंहटाएंहो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।
सुन्दर
बहुत सुन्दर
बहुत ही उत्तम रचना और वक्त की सच्चाई दिखाती हुई...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंumdaa rachnaa guru ji.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम
हे प्रभो! इस आदमी को देख लो,
जवाब देंहटाएंलिप्त है इसमे बहुत शैतानियत,
आज परिवर्तन हुआ कैसा घना,
हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।
बिल्कुल सही है !!
इसी प्रश्न जाल मे तो इन्सान उलझा हुआ है………………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंbahtrin bahut khub
जवाब देंहटाएंbadhia aap ko is ke liye
shkehar kumawat
बहुत सुन्दर रचना! शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंbahut sundar!
जवाब देंहटाएंवाह जि बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह रचना. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंचम्पू छंद की विशेषता बताएँ...
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान,
जवाब देंहटाएंकितना बदल गया इंसान।