अगर दिलदार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! न होती सृष्टि की रचना, न होता धर्म का पालन। न होती अर्चना पूजा, न होता लाड़ और लालन। अगर परिवार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! चमन में पुष्प खिलते क्यों, हठी भँवरे मचलते क्यों? महक होती हवा में क्यों, चहक होती हुमा में क्यों? अगर शृंगार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! वजन ढोता नही कोई, स्रजन होता नही कोई। फसल बोता नही कोई, शगल होता नही कोई। अगर घर-बार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! अदावत भी नही होती, बग़ावत भी नही होती। नही दुश्मन कोई होता, गिला-शिकवा नही होता। अगर गद्दार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! कोई मरता नही जीता, गरल कोई नही पीता। परम सुख-धाम पाने को, नही पढ़ता कोई गीता। अगर संसार ना होता! जहाँ में प्यार ना होता!! |
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सोमवार, 12 अप्रैल 2010
“जहाँ में प्यार ना होता!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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nice poem
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंचमन में पुष्प खिलते क्यों,
जवाब देंहटाएंहठी भँवरे मचलते क्यों?
बेहतरीन। लाजवाब।
दिलदार ही तो प्यार का आधार होता है
जवाब देंहटाएंसुन्दर
बहुत सटीक रचना ..जीवन के दर्शन को बता दिया है...इस संसार में ये सब होना भी ज़रूरी है...बहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत!
जवाब देंहटाएं--
माँग नहीं सकता न, प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
--
संपादक : सरस पायस
bilkul sach keha sir !
जवाब देंहटाएंItna achchha kaise likh lete hai aap?
जवाब देंहटाएंhame bhi bataiiyega
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्यार अजनबी है...
जवाब देंहटाएंप्यार जरूरी है....
और हमें आपकी कविताओं और गीतों से प्यार है. ...
चमन में पुष्प खिलते क्यों,
जवाब देंहटाएंहठी भँवरे मचलते क्यों?
महक होती हवा में क्यों,
चहक होती हुमा में क्यों?
अगर शृंगार ना होता!
जहाँ में प्यार ना होता!!
वाह वाह! अत्यंत सुन्दर! बिल्कुल सही कहा है आपने! लाजवाब रचना!