तुमने अमृत बरसाया तो, मैं कितना अभिभूत हो गया! मन के सूने से उपवन में, फिर बसन्त आहूत हो गया! आसमान में बादल गरजा, आशंका से सीना लरजा, रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारें, हरा-भरा फिर ठूठ हो गया! चपला चम-चम चमक उठी है, धानी धरती दमक उठी है, खेतों में पसरी हरियाली, मन प्रमुदित आकूत हो गया! जब स्वदेश पर संकट आया, सीमा पर वैरी मंडराया, मातृ-भूमि की बलिवेदी पर फिर से धन्य सपूत हो गया! |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
“धन्य सपूत हो गया!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
सुन्दर शब्द चयन के साथ बहुत ही सार्थक एवं लयबद्ध गीत ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंhttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
जब स्वदेश पर संकट आया,
जवाब देंहटाएंसीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया!
Bahut khoob !
बहुत ही सुन्दर और लयबद्ध गीत्।
जवाब देंहटाएंaap hamesha hi nirali vidha mein likhte hai sir :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंsundar chitran...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! ख़ूबसूरत गीत!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशानदार
जानदार रचना ................बधाई !
- अलबेला खत्री
तुमने अमृत बरसाया तो,
जवाब देंहटाएंमैं कितना अभिभूत हो गया!
मन के सूने से उपवन में,
फिर बसन्त आहूत हो गया!
बहुत सुन्दर भाव...पुरी रचना ही बहुत अच्छी है...साथ ही प्रेरणादायक भी...
सुन्दर, मधुर...
जवाब देंहटाएं"जब स्वदेश पर संकट आया,
जवाब देंहटाएंसीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया!"
सार्थक और प्रेरणादायक !
वाह शास्त्रीजी, बारिश की बात कर दी, यहाँ तो बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। लेकिन अन्त में देश भक्ति का जज्बा भर दिया आभार।
जवाब देंहटाएंजब स्वदेश पर संकट आया,
जवाब देंहटाएंसीमा पर वैरी मंडराया,
मातृ-भूमि की बलिवेदी पर
फिर से धन्य सपूत हो गया
वाह शास्त्री जी ... कितना अनुपम लिखा है .. शब्दों में ग़ज़बका आकर्षण है ...
guru ji....
जवाब देंहटाएंbahut sundar geet.