जब एकाकीपन होता है। तब ही कुछ चिन्तन होता है।। सूरज हँसता जब अम्बर में आलोकित उपवन होता है। जब विचार की धारा बहती छाया नभपर घन होता है। कंगाली में आटा गीला बरस रहा सावन होता है। जो रहते हैं संगे-महल में उनका पत्थर मन होता है। ढका हुआ उजले लिबास में मैला-मैला तन होता है। राम नाम की लूट मची है लुटता हुआ वतन होता है। “रूप” अनोखा इस दुनिया का ख़ुदा जहाँ पर धन होता है |
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गुरुवार, 7 जुलाई 2011
"लुटता हुआ वतन होता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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शास्त्री जी,नमस्कार !
जवाब देंहटाएंसही चिन्तन हुआ है ...आप की कलम से ...
ढका हुआ उजले लिबास में
मैला-मैला तन होता है।
बधाई !
शुभकामनायें १
सुन्दर नवगीत.. बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंजो रहते हैं संगे-महल में
जवाब देंहटाएंउनका पत्थर मन होता है।
....बहुत सुन्दर और सार्थक रचना..आभार
आज का कटु सत्य बयाँ कर दिया।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है दादा
जवाब देंहटाएंराम नाम की लूट मची है
लुटता हुआ वतन रोता है।
तो बहुत ही सुन्दर बन पड़ी है
सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंबेहद साफगोई ...खुदा के घर मिला इतना मूल्यवान खजाना ....? आजकल तो खुदा भी नेताओं की तरह बन गया हैं ...स्विस बैंक ( तलघर ) में छिपा कर रखना पड़ रहा है उसको अपना धन ? वाह ! जब खुदा का यह हाल हैं तो हम तो इंसान है ....
जवाब देंहटाएंकलम 'रूप' की लिक्खे कुछ भी,
जवाब देंहटाएंउम्दा बहुत सुखन होता है।
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंकजी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,
ढका हुआ उजले लिबास में,
जवाब देंहटाएंमैला मैला मन होता है !
यथार्थ का बेहद सटीक चित्रण !
आभार !
वाह ...बहुत ही बढि़या ...
जवाब देंहटाएंजो रहते हैं संगे-महल में
जवाब देंहटाएंउनका पत्थर मन होता है।
बढि़या ||
ढका हुआ उजले लिबास में ,
जवाब देंहटाएंमैला मैला तन होता है .
सुनदर नव गीत ,भाव और अर्थ सौन्दर्य व्यंग्य विडंबना अपने लघु कलेवर में समेटे हुए . .
और वतन वाले भी। सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंdr.saheb mann ki pida sabaki pida hai fir bhi naa jane kyon sabako mithi lagati hai sadhuwad
जवाब देंहटाएंअग्नि जला कर जिसे निखारे
जवाब देंहटाएंअरे ! वही कुंदन होता है.
लिपटे तन पर नाग विषैले
वृक्ष वही चंदन होता है.
प्रेरणाजनित .....
सब कुछ कह दिया आपने साफ़ साफ यही सच है... हर चीज के दो पहलु हैं... आपके गीत में इन दोनों पहलुओं को हमारे सामने रखा| साधुवाद!
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर आये इसके लिए भी बहुत बहुत धन्यवाद!
शास्त्री जी! निराला जी को इस बात का बहुत ही मलाल था कि तुलसी दास ने सब कुछ लिख दिया अब वे क्या लिखें और इस आक्रोश को वे बहुत वीभत्स तरीके से व्यक्त करते थे, आपकी यह रचना पढ़कर इस समय मेरा भी हाल कुछ निराला जी जैसा ही हो रहा है। बस मैं उतना आक्रोशित नहीं हो सकता वह भी आपके प्रति
जवाब देंहटाएंइस दुनिया में धन ही खुदा होता है ...
जवाब देंहटाएंएकदम ठीक ...
कंगाली में आटा गीला
जवाब देंहटाएंबरस रहा सावन होता है
bahut hee badhiya geet!
as usual...pyari si rachna....ham jaiso ke comments se upar ki rachna...:)
जवाब देंहटाएंbahut hi bahtreen kavita har line ko bar bar padne ko man karta hai sorry thoda late padhi.post ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में है वो नशा
जवाब देंहटाएंबस पढ़ते जाने का मन होता है....
अत्यंत उत्तम कविता है ये मयंक जी!!