रोते आये थे मगर शान्त बशर जाएँगे आखिरी वक्त में डोली में पसर जायेंगे अब तुम्हें अपना स्वयं ही खयाल रखना है जाने वाले न कभी लौट के घर आयेंगे भूल जाना वो इनायत, वो शिकायत-शिकवे हम तो दीवार पे हँसते ही नज़र आयेंगे आना और जाना नहीं हाथ में किसी के भी काफिले आयेंगे, राहों से गुज़र जाएँगे “रूप” रहता है सलामत न कभी फूलों का बस घड़ी भर को खिलेंगे औ’ बिखर जायेंगे |
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मंगलवार, 12 जुलाई 2011
"बिखर जायेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जिंदगी का सीख देती रचना... बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएं“रूप” रहता है सलामत न कभी फूलों का
जवाब देंहटाएंबस घड़ी भर को खिलेंगे औ’ बिखर जायेंगे
सत्य को कहती अच्छी गज़ल
आना और जाना नहीं हाथ में किसी के भी
जवाब देंहटाएंकाफिले आयेंगे, राहों से गुज़र जाएँगे
इंसान को नई राहे खुद चुननी चाहिए.. वरना तो बिखरन ही बिखरन है ......काफिले तो होते ही हैं गुजरने के लिए .....धन्यवाद !
बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ..
जवाब देंहटाएंउम्दा गज़ल.
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई बयान कर रही है आपकी लाजवाब गज़ल ... नमस्कार शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब और सुंदर बन पड़ी है कविता
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है सर.
जवाब देंहटाएं----------------
कल 13/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आना और जाना नहीं हाथ में किसी के भी ||
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ||
बधाई शास्त्री जी ||
जीवन की अ -परवर्तन शील शाश्वत क्षण -भंगुरता का सार्थक यथार्थ मूलक बिम्ब .सुन्दरसंतृप्त भाव बोध .
जवाब देंहटाएंबस, खिलना और सुगन्ध फैलाना है।
जवाब देंहटाएंyahi jeevan ka antim satya hai.bahut umda ghazal likhi hai Shastri ji.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ,नमस्कार !
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रूबरू कराती रचना !
शुभकामनायें!
आना और जाना नहीं हाथ में किसी के भी
जवाब देंहटाएंकाफिले आयेंगे, राहों से गुज़र जाएँगे
लोग आते हैं ...चले जाते हैं ..समय किसी के लिए नहीं ररुकता...इस सच से सामना कराती रचना ......
lekin phoolon ki khushboo hamesha kaayam rahegee!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुती...
जवाब देंहटाएंआना और जाना नहीं हाथ में किसी के भी
जवाब देंहटाएंकाफिले आयेंगे, राहों से गुज़र जाएँगे
बहुत खूब कहा है आपने ।
बहुत गहरी बातें कही हैं आज आपने ..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ..
भूल जाना वो इनायत, वो शिकायत-शिकवे
जवाब देंहटाएंहम तो दीवार पे हँसते ही नज़र आयेंगे
क्या बात है सर ! आज इतना अध्यात्म भीगा मन , कहीं रुसवाई तो नहीं देना चाहते गुलों को ? बहुत हौसला देना है अभी / भाव -प्रवर सृजन सम्मोहित कर गया / शुक्रिया जी /
“रूप” रहता है सलामत न कभी फूलों का
जवाब देंहटाएंबस घड़ी भर को खिलेंगे औ’ बिखर जायेंगे
बहुत सुन्दर ग़ज़ल...बधाई