इस ग़ज़ल में एकवचन-बहुवचन का दोष है। चित्त एकाग्र होने पर सुधार कर लूँगा! थे कभी शागिर्द जो करने लगे वो वार हैं गुर नहीं जो जानते लेकर खड़े हथियार हैं तीर तरकश में बहुत होंगे हमें सब कुछ पता, फूल भी अपने चमन के बन गये अब खार हैं है बहुत बेचैन दिल नादानियों को देखकर, अमन के पैगाम में बढ़ने लगी तकरार है साथ परछाई नही देती कभी तंगहाल में ज़र के पीछे भागते देखे यहाँ किरदार हैं जो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला बेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार है जब यक़ीदा ही नहीं व्यापारियों के बीच में इस पार हम उस पार वो और बीच में दीवार है हो भले ही दुश्मनी लेकिन समझदारी तो हो अब दरकते पर्वतों के मिट गये आधार हैं “रूप” नालों ने दिखाया जब हुई बरसात है झूठ का व्यापार है खुदगर्ज़ ये संसार है |
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बुधवार, 20 जुलाई 2011
"बेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला
जवाब देंहटाएंबेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार हैं
कया बात है शास्त्री जी! आज तो बहुत ही आनंद आया इस ग़ज़ल को पढकर!
बेहतरीन रचना.... वाकई यह संसार बेबफा है...
जवाब देंहटाएंजो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला
जवाब देंहटाएंबेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार हैं।
कृतघ्न की सटीक व्याख्या!!
जो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला
जवाब देंहटाएंबेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार हैं...
सटीक कहा है आपने! बहुत सुन्दर रचना!
बहुत गजब लिखा है...और कभी ये हकिकत भी होती है..जिसको आपने बड़े सुन्दर तरीके से कलमबद्ध किया है..आपका आभार
जवाब देंहटाएंह्रदय के भावो को ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर दिया है आपने .यथार्थ को अभिव्यक्ति प्रदान करती आपकी रचना मन को छू गयी .आभार
जवाब देंहटाएंaadarniy sir
जवाब देंहटाएंbahut hi yatharth v sateek roop dikhaya hai aapne samaj ka .bahut hi achhi prastuti .
par main ek baat kahna chahungi ki kabhi -kabhi gair bhi apne sagon se badh kar ho jaate hain .aap anytha na lijiyega .chunki ye ghatna mere saath ghatit ho chuki hai.
bahut hi badhiya prastuti
hardik naman
poonam
बहुत खूबसूरती से मन के भावों को कहा है ... अच्छी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंहो भले ही दुश्मनी लेकिन समझदारी तो हो
जवाब देंहटाएंये आपने सो आने सच्ची बात कही शास्त्री जी.आभार अच्छी सीख देने के लिए.
अपने दिखा कर सपने दे जाते है धोखा पीड़ा बहुत होती है मन मे पर करें क्या आदत नही है जो हम भी खोजे मौका
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अपनी सी लगी रचना...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना अपने आप में सुंदर है।
जवाब देंहटाएं...लेकिन आदमी हमेशा बेवफ़ा नहीं होता बल्कि कभी कभी वह हालात का मारा हुआ या किसी ग़लत दोस्त के फेर में आकर ग़लत फ़ैसले लेने वाला भी होता है यानि कि बहुत सी ऐसी सिचुएशन्स हैं कि आदमी बेवफ़ा न हो और उससे वफ़ा की आशा रखने वाले की अपेक्षा पूरी न हो पा रही हो।
हिंदुस्तानी फ़िल्मों में ऐसी बहुत सी सिचुएशन्स डिस्कस की गई हैं। डिस्कस क्या बल्कि फ़िल्माई गई हैं।
पता चला कि हीरोईन त्याग की मूर्ति है और हीरो उसे ग़लत समझ रहा है। इसीलिए मुझे फ़िल्म का क्लाईमेक्स हमेशा से पसंद है क्योंकि उसमें ग़लतफ़हमियों का अंत हो जाता है।
राजा हिन्दुस्तानी का नाम भी इस विषय में एक अच्छा नाम है। उसके गाने भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।
ख़ैर, वह जीवन ही क्या जिसमें सब रस न हों ?
कवि को तो सभी रसों को अभिव्यक्ति देनी पड़ती है।
आपकी रचना सचमुच अच्छी है।
jahan-tahan urdu lafzo ka prayog kahne ke bhaav ko damdaar bana raha hai. bahut gehri chot karti hui aapki rachna sateek hai.
जवाब देंहटाएंdr.saheb,g eve,bhale hi be-vafa se vafa ki ummid hi bekar ho,lekin aap se hamen poori ummid hai ki aap prayas nahi chhodengen,vo apana dharm nibha raha hai to aap bhi apana dharm nibhane mse pichhe hatane walon m se nahi ho .lage raho munna bhai ki taraz par .mangalkamana.
जवाब देंहटाएंdil ke dard ko rachanaa main utaraa hai.bahut gaharai liye hue dardmai gajal.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतरीन भावों से सजी सुंदर गजल। आभार।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आपसे इस वार की, तलवार की धार की उम्मीद न थी। खैर ...
जवाब देंहटाएंअब गर्दन काट ही दी तो क्या कीजै ?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअविनाश जी!
जवाब देंहटाएंरचना पर कमेंट कीजिए!
हम भी आपके मित्र ही हैं!
बहुत उम्दा सुन्दर और धारदार शानदार प्रस्तुति………ये दुनिया ऐसी ही है किसी का ना हुई है ना होगी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति की है। आभार।
जवाब देंहटाएं“रूप” नालों ने दिखाया जब हुई बरसात है
जवाब देंहटाएंझूठ का व्यापार है खुदगर्ज़ ये संसार है
bahut umda....
सभी एक से बढ़कर एक.. लेकिन एक बात तो है कि बेवफा में वफा भी शामिल है...
जवाब देंहटाएंरचना में इस बार अलग-सा रंग देखने को मिला.क्या कहने हैं.इसे पढ़ते वक़्त किसी का एक बहुत प्यारा शेर याद आ गया,आप भी सुनिए:-
जवाब देंहटाएंवफ़ा के नाम पे इतने गुनाह होते हैं.
ये उनसे पूछे कोई जो तबाह होते हैं.
गहरी कविता, अपनों की पीड़ा भी गहरी होती है।
जवाब देंहटाएंसाथ परछाई नही देती कभी तंगहाल में
जवाब देंहटाएंज़र के पीछे भागते देखे यहाँ किरदार हैं
jeewan ka sach...behtarin tarike se bayan kiya hai aapne..
bahut hee sundar gazal hai!
जवाब देंहटाएंजो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला
जवाब देंहटाएंबेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार है
एकदम दुरुस्त हैं
बेहतरीन रचना.... वाकई यह संसार बेबफा है...
जवाब देंहटाएंजो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला
जवाब देंहटाएंबेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार हैं।..बहुत सुन्दर दिल से निकली गजल है...आभार..
जो न अपनों का हुआ गैरों का होगा क्या भला
जवाब देंहटाएंबेवफा से वफा की उम्मीद ही बेकार हैं।..बहुत सुन्दर दिल से निकली गजल है...आभार..
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
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