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बहुत सुन्दर विरह का गीत है, यह गज़ल मेरे भी दिल को छू गई!
जवाब देंहटाएं्वाह आज तो बहुत ही मोहक अन्दाज़ है।
जवाब देंहटाएंचैन छीना, करार छीना है,
जवाब देंहटाएंरात आँखों में गुज़र जाती है
अब अकेले सफर नहीं कटता
कोई मंजिल नज़र न आती है
waah behtree najm ......
kya baat hai...aaj ka andaaz bilkul rumaani hai...
जवाब देंहटाएंbhut hi manmohak aur premmayi rachna...laazwab:)
जवाब देंहटाएंस्वप्निल भावों की मोहक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंश्रृंगार के वियोग पक्ष पर बहुत सुन्दर रचना शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंits different!!
जवाब देंहटाएं:)
बहुत सुन्दर ग़ज़ल..!!!!!
जवाब देंहटाएंअब अकेले सफर नहीं कटता
जवाब देंहटाएंकोई मंजिल नज़र न आती है
क्या बात है शास्त्री जी मायूसी झलक रही है ?
वाह , यह एक बिलकुल अलग अंदाज़ की ग़ज़ल है .
जवाब देंहटाएंलगता है कोई किशोर कह रहा है अपने मन की बात .
बहुत ही बेहतरीन रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
चांदनी के आगे तो चंदा पानी भरे।
जवाब देंहटाएंये विरह का गीत भी लाजवाब है शास्त्री जी ... नमस्कार ...
जवाब देंहटाएंवाह !!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ,
पढकर मज़ा आ गया ||