बहुत अरमान हैं दिल में, हमें गढ़ना नहीं आता पहाड़ों की कठिन मंजिल, हमें चढ़ना नहीं आता सितारे टिमटिमाते हैं, मगर है चाँदनी गायब अन्धेरे में सही पथ पर, हमें बढ़ना नहीं आता हमारी ताक में दुश्मन, छिपे बैठे हैं झुरमुट में बिना हथियार के उनसे, हमें लड़ना नहीं आता समझती ही नहीं है अब नजर, नजरों की भाषा को हमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता फटे ढोलक के ताले हैं, सुरों का “रूप” ओझल है नई सी खाल तबले पर, हमें मढ़ना नहीं आता |
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मंगलवार, 27 सितंबर 2011
"हमें लड़ना नहीं आता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंbahut khoob,kaabile tareef ghazal.
जवाब देंहटाएंखू ब सु र त ||
जवाब देंहटाएंहमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता
जवाब देंहटाएंआजकल् एक नये ‘रूप’ से परिचय हो रहा है,
जो अच्छा है, वो अच्छा है,
इसके आगे हमें गढ़ना नहीं आता।
बहुत सुन्दर ! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
गज़ब की प्रस्तुति है…………सभी एक से बढकर एक हैं।
जवाब देंहटाएंवाह - वाह क्या खूब कहा है आपने ...बहुत ही बढि़या ।
जवाब देंहटाएंsundar aur rochak prastuti.
जवाब देंहटाएं'हमारी ताक में दुश्मन, छिपे बैठे हैं झुरमुट में
जवाब देंहटाएंबिना हथियार के उनसे, हमें लड़ना नहीं आता'
- यहाँ तो दुश्मन घर में ही बैठे हैं ,लड़ना तो बाद की बात ,समझना भी नहीं आता!
बहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम
फिर भी कोई मुगालता ना पाले, जब अपनी पर हम आते हैं तो बुलंदियां पैरों तले होती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब और बेहद रोचक...
जवाब देंहटाएंसमझती ही नहीं है अब नजर, नजरों की भाषा को
जवाब देंहटाएंहमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता|
प्यार से भरपूर शिकायत ....!
शुभकामनाएँ!
एक नज़र इधर भी
बेहतरीन, साहित्यिक आनन्द का प्रवाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar....hame likhna nahi aata aur unhe padhna nahi aata...
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसमझती ही नहीं है अब नजर, नजरों की भाषा को
जवाब देंहटाएंहमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता
फटे ढोलक के ताले हैं, सुरों का “रूप” ओझल है
नई सी खाल तबले पर, हमें मढ़ना नहीं आता
वाह !!! बहुत ही अलग अंदाज .
सबकुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी.....
सच है दुनियाँ वालों कि हम हैं अनाड़ी.
क्या बात है सर ..... हमें लड़ना नहीं आता ..काश ऐसा हो जाता ... प्रीत रहती बैर चला जाता ...खुबसूरत रचना ... शुक्रिया जी /
जवाब देंहटाएंप्रेम ही को मन बसाते हैं
जवाब देंहटाएंक्योंकि हमें लड़ना नहीं आता।
समझती ही नहीं है अब नजर, नजरों की भाषा को हमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता kya gazab ka likhe hain......wah.
जवाब देंहटाएंशक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंbahut khoob babu ji...aabhar
जवाब देंहटाएंham kaise maan le ?
जवाब देंहटाएं:)
sunder prastuti.
समझती ही नहीं है अब नजर, नजरों की भाषा को
जवाब देंहटाएंहमें लिखना नहीं आता, उन्हें पढ़ना नहीं आता!
shandar