ढल गई बरसात अब तो, हो गया है साफ अम्बर। खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।। उमस ने सुख-चैन छीना, हो गया दुश्वार जीना, आ रहा फिर से पसीना, तन-बदन पर। खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।। हरितिमा होती सुनहरी जा रही. महक खेतों से सुगन्धित आ रही, धान के बिरुओं ने पहने आज झूमर। खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।। ढल रहा गर्मी का यौवन जानते सब, कुछ दिनों में सर्द मौसम आयेगा जब, फिर निकल आयेंगे स्वेटर और मफलर। खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।। |
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रविवार, 11 सितंबर 2011
"धूप फिर से आज भू पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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दादा कुछ धूप हमारे पास भी भेंजे यहां तो बाढ़ से जीवन अस्तव्यस्त हो रखा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण..आभार
जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी ... प्रकृति को अनुपम सुंदरता से लिखा है ...
जवाब देंहटाएंbahut khoobsoorat chitran.
जवाब देंहटाएंखिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
हरितिमा होती सुनहरी जा रही.
जवाब देंहटाएंमहक खेतों से सुगन्धित आ रही,
धान के बिरुओं ने पहने आज झूमर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।
shaandaar likha hai Sir...
.
prakarti ke har pahloo par najar rakhti hai aapki kalam.bahut uttam very nice.
जवाब देंहटाएंखिल उठी है चिलचिलाती,
जवाब देंहटाएंधूप फिर से आज भू पर।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
ढल रहा गर्मी का यौवन जानते सब,
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों में सर्द मौसम आयेगा जब,
फिर निकल आयेंगे स्वाटर और मफलर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर||
............बहुत ही खुबसूरत कविता ...............
श्रीमान जी कब आएगा ऐसा मौसम इंतजार कर रहें है |
sunadr kavita.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर...पुन: पुन: बहुत सुन्दर./
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंइसी चक्र से जीवन चल रहा है। दुख के बाद ही सुख की कीमत पता चलती है। एकरसता तो ऊब ही पैदा करती है।
जवाब देंहटाएंjeevan roop darshati sunder kavita..
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण और सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंउत्तराखंड का ये हाल है...तो हम यू पी वालों का क्या होगा...
जवाब देंहटाएंMAUSAM KE ANROOP SUNDER RACHNA..........
जवाब देंहटाएंsundar kavita....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण..आभार
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
हरितिमा होती सुनहरी जा रही.
जवाब देंहटाएंमहक खेतों से सुगन्धित आ रही,
धान के बिरुओं ने पहने आज झूमर।
मौसम के संधि-काल का मन-भावन, बेजोड़ प्रकृति-चित्रण .
सटीक चित्रण किया है इस मौसम का।
जवाब देंहटाएंउमस ने सुख-चैन छीना,
जवाब देंहटाएंहो गया दुश्वार जीना,
आ रहा फिर से पसीना, तन-बदन पर।
खिल उठी है चिलचिलाती, धूप फिर से आज भू पर।।
wakai kitna kast jhela tha...chaliye ab suhane din aane wale hain...aap mere blog per kab aane wale hain...sadar pranam ke sath
बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण ...और आज तो आपका ब्लॉग भी मेरे कंप्यूटर पर खुल पाया है ..ये अलग बात है ...लगे १० से १५ मिनट ...
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत
जवाब देंहटाएंहालांकि अभी तक बारिश ने बेहाल कर रखा है और धूप का इंतजार है .
कुदरत की गोदी मे खिलखिलाती धूप :-) प्यारी से भी बहुत ज्यादा
जवाब देंहटाएं