कभी कुहरा, कभी सूरज, कभी आकाश में बादल घने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आसमां पर चल रहे हैं, पाँव के नीचे धरा है, कल्पना में पल रहे हैं, सामने भोजन धरा है, पा लिया सब कुछ मगर, फिर भी बने हम अनमने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आयेंगे तो जायेंगे भी, ज़िन्दगी में खायेंगें भी, हाट मे सब कुछ सजा है, लायेंगे तो पायेंगे भी, धार निर्मल सामने है, किन्तु हम मल में सने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। देख कर करतूत अपनी, चाँद-सूरज हँस रहे हैं, आदमी को बस्तियों में, लोभ-लालच डस रहे हैं, काल की गोदी में, बैठे ही हुए सारे चने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। |
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मंगलवार, 3 जनवरी 2012
"आकाश में बादल घने हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पा लिया सब कुछ मगर,
जवाब देंहटाएंफिर भी बने हम अनमने हैं।
सुन्दर कविता है..
kalamdaan.blogspot.com
आयेंगे तो जायेंगे भी,
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी में खायेंगें भी,
हाट मे सब कुछ सजा है,
लायेंगे तो पायेंगे भी,
धार निर्मल सामने है,
किन्तु हम मल में सने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
सुन्दर !
बहुत सुंदर प्रभावी रचना,...
जवाब देंहटाएं"काव्यान्जलि":
नही सुरक्षित है अस्मत, घरके अंदर हो या बाहर
अब फ़रियाद करे किससे,अपनों को भक्षक पाकर,
आपकी सभी रचनाओं में जीवन के नए-नए अंदाज छिपे होते हैं | इतनी अच्छी पोस्ट हेतु आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई लिख दी आपने ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ....
नव वर्ष की शुभकामनायें शास्त्री जी ...!!
yahi sach hai , sundar shabdon men hamen thama diya hai.
जवाब देंहटाएंजी हाँ ये मानव शरीर दुःख सुख भोगने के लिए ही मिला है ...यही तो जीवन है शास्त्री जी .........बिलकुल सही बात बताई है आपने !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुतिकरण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या कहने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक बात शास्त्री जी, आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंmeethi thand jaisee meethi rachna....is baar aap mere blog par aaye nahee guru jee :-(
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंLajawaab ...
जवाब देंहटाएंहक़ीक़त को पाने के लिए गहरी नज़र, कड़ी साधना और निष्पक्ष विवेचन की ज़रूरत पड़ती है।
http://vedquran.blogspot.com/2012/01/sufi-silsila-e-naqshbandiya.html
कहीं धूप तो कहीं छाँव..
जवाब देंहटाएंइस युग के मानव की मनोदशा का जीवंत वर्णन!
जवाब देंहटाएं--
नए साल में आपकी लेखनी में उन्नति एक नई धार दिखाई दे रही है!
नव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||
जवाब देंहटाएंधनबाद में हाजिर हूँ --
पा लिया सब कुछ मगर,
जवाब देंहटाएंफिर भी बने हम अनमने है…………सच्चाई को उकेरती सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया सर...
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचना..
नववर्ष शुभ हो.
सादर...
यही है जीवन की सच्चाई, कहीं मिलन तो कहीं विदाई ! आभार !
जवाब देंहटाएंकभी कुहरा, कभी सूरज,
जवाब देंहटाएंकभी आकाश में बादल घने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
bahut sundar abhivykti hai....
काल की गोदी में,
जवाब देंहटाएंबैठे ही हुए सारे चने हैं।
दुःख और सुख भोगने को,
जीव के तन-मन बने हैं।।
शास्वत सत्य - वाह ! !