बस टीस सी उठती है, और दर्द उभरता है भट्टी में पिघलकर ही, तो स्वर्ण निखरता है सच्चाई अगर है तो, कुछ आँच नहीं आती अग्नि की परीक्षा से, तो खोट ही डरता है कलियुग हो या हो सतयुग, त्रेता हो या हो द्वापर प्रह्लाद भक्त का तो, कुछ भी न बिगड़ता है सच्ची लगन अगर हो, दिल में भी आग हो कुछ उसका ही दो-जहाँ में, बस प्यार सँवरता है आशिक है “रूप” का जो, मजनूँ वो क्या बनेगा शीशा चटक गया तो, हरग़िज़ न सुधरता है "विनीत संग पल्लवी-सत्यकथा" |
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शनिवार, 7 जनवरी 2012
"दर्द उभरता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत सुन्दर रचना शास्त्री जी | आभार |
जवाब देंहटाएंसच्चाई अगर है तो, कुछ आँच नहीं आती
जवाब देंहटाएंअग्नि की परीक्षा से, तो खोट ही डरता है.
सटीक अभिब्यक्ति - वाह !
Nice , very nice .
जवाब देंहटाएंखरे की पहचान कसौटी पर ही होती हैं.
जवाब देंहटाएंबस टीस सी उठती है, और दर्द उभरता है
जवाब देंहटाएंभट्टी में पिघलकर ही, तो स्वर्ण निखरता है
बहुत सुन्दर,
शास्त्री जी,...आपके दर्द को मै समझ सकता हूँ,
जवाब देंहटाएंजाके पैर न फटे बेवाई,वो क्या जाने पीर पराई,
मन के उठते भावनाओं की सुंदर प्रस्तुति,--काव्यान्जलि--जिन्दगीं--
यह गीत बहुत दर्दीला है,
जवाब देंहटाएंनायक भी बहुत शर्मीला है.
जिगर तो मुह में आता है
पर शब्द नहीं कह पाता है.
अन्दर ही अन्दर घुटता है,
मन ही मन में तडपता है.
देख के उसका निश्छल प्यार,
देने को साथ हम हैं तैयार.
बहुत बढ़िया रचना सर..
जवाब देंहटाएंसादर.
बड़े ही नीतिपरक दोहे, सार गर्भित
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना सर..
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की कृपा किजियेगा..
http://palchhin-aditya.blogspot.com/
सत्य तो अटल है उसको किसी भी कसौटी की जरूरत नहीं होती. बड़े नीतिपरक रचना है. कुछ सिखा जाती है आपकी कृति.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब. बेहद सुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ती
जवाब देंहटाएंबढिया रचना।
जवाब देंहटाएंवो टूटे आईने के सामने सजता-सँवरता है
जवाब देंहटाएंदरकते आईने की आह पर भी वाह करता है
कभी शीशे के मन के आईने में झाँक कर देखो
हृदय-भट्टी में जलता रूप,सोने सा निखरता है.
धमनभट्टी में पिघला और शीशा बन के था निकला
किसी अग्नि-परीक्षा से नहीं शीशा ये डरता है.
आदरणीय शास्त्री जी, आपकी कविता की टीस ,दर्द और शीशे की चटकन ने मन को झकझोर कर रख दिया.मन में उपजे भावों को टिप्पणी के रूप में लिख दिया है.
बहुत सुन्दर रचना शास्त्री जी | आभार |
जवाब देंहटाएंसच्चाई अगर है तो, कुछ आँच नहीं आती
जवाब देंहटाएंअग्नि की परीक्षा से, तो खोट ही डरता है
इन दो वाक्यों में बहुत सच्चाई है..
कितने लोग सचमुच समझते हैं..
अफ़सोस ! बहुत कम !!
kalamdaan.blogspot.com
बहुत बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंdard ki anubhuti krati sarthak post .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं