दो दिन दिल्ली में रुका, निबटाए कुछ काम। फिर घर आया लौटके, करने को आराम।१। कोरे कागज पर लिखे, अपने कुछ मजमून। फिर पत्नी को साथ ले, पहुँचा देहरादून।२। बड़े पुत्र के सदन में, किया अल्प विश्राम। फिर दर्शन करने गया, नारायण के धाम।३। मिलता है सौभाग्य से, पंडित जी का साथ। सियासती वटवृक्ष से, हुई हमारी बात।४। ये विकास के पुरुष हैं, इनका है सन्देश। गंगा बहे विकास की, प्रगतिशील हो देश।५। उर में बहता है सदा, ममता का लालित्य। ऐसे अपने गुरू को, भेंट किया साहित्य।६। नारायण दरबार में, जो रहते हैं मग्न। वो संजय जोशी अभी, सेवा में संलग्न।७। फोन किया मेरे लिए, पाकर के आदेश। मुख्यमन्त्री से मिलो, दिया मुझे सन्देश।८। नारायण का पत्र ले, मैं पहुँचा दरबार। विजय बहुगुणा का मिला, मुझको स्नेह अपार।९। नाविक को मझधार में, चप्पू की है ओट। घर का बुद्धू आ गया, घर को अपने लौट।१०। |
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गुरुवार, 12 अप्रैल 2012
"देहरादून यात्रा-दस दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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नाविक को मझधार में, चप्पू की है ओट।
जवाब देंहटाएंघर का बुद्धू आ गया, घर को अपने लौट।
देर आयद दुरुस्त आयद .गुस्ताखी माफ़ .बढ़िया देहरादूनी दोहे लीची से मीठे .भगवान् आपकी यात्रा फल प्रद सिद्ध होवे .
नाविक को मझधार में, चप्पू की है ओट।
जवाब देंहटाएंघर का बुद्धू आ गया, घर को अपने लौट।
देर आयद दुरुस्त आयद .गुस्ताखी माफ़ .बढ़िया देहरादूनी दोहे लीची से मीठे .भगवान् आपकी यात्रा फल प्रद सिद्ध होवे .
jeevan ke har pal aur har ghatna ko kaise jeekar shabdon men dhal kar sabse baant len ye apake siva aur koi nahin kr sakata hai.
जवाब देंहटाएंbahut achchha lagata hai jab apake dohe padhati hoon.
वाह वाह क्या बात है! बधाई
जवाब देंहटाएंउल्फ़त का असर देखेंगे!
इतना काम करने के बाद घर आने का आनन्द ही अलग है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ||
पास पास से लौट गए किया हमे नाराज
जवाब देंहटाएंदेहरादून आप आये थे पता चला ये आज |
shastri ji lage rahiye.safalta avashay hath lagegi.sundar prastuti.''manzil pas aayegi
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है! बधाई शास्त्री जी..
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है! बधाई शास्त्री जी..
जवाब देंहटाएंबड़े बड़े लोगों से मुलाकात कर आये आप.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं♥
आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी
सादर प्रणाम !!
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रूपचंद्रजी शास्त्री, आदर सहित प्रणाम !
राजनीति में भी करें , ऊंचा अपना नाम !!
नेताओं को बेवफ़ा होने का है श्राप !
मत बिसरा देना हमें, लीडर बन कर आप !!
मन से है शुभकामना , करें आप स्वीकार !
मिले सफलता तब हमें , दें मत आप बिसार !!
शुरू प्रतीक्षा हो गई , शीघ्र दीजिए भोज !
कवि-सम्मेलन का मुझे न्यौता भेजें रोज़ !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
आप नित्य उन्नति करें पूरें हो सब काम।
जवाब देंहटाएंमुझ जैसे इस अनुज का पहुँचे सदा प्रणाम।
ईश्वर आपकी मनो कामना पुर्ण करे,...
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट
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MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
नाविक को मझधार में, चप्पू की है ओट।
जवाब देंहटाएंघर का बुद्धू आ गया, घर को अपने लौट।
घर लौटना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है.
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ शास्त्री जी.
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र -
जवाब देंहटाएंबस एक छोटी सी गुज़ारिश - ब्लॉग बुलेटिन
सबसे अच्छा
जवाब देंहटाएंअपना घर
होता खुश
पाकर अपना
बुद्धू !
आज शुक्रवार
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति ||
charchamanch.blogspot.com
maja aa gaya sir... doho mein pura vritaant suna diya aapne...
जवाब देंहटाएंapki aapbeeti behad achchi lagi.
जवाब देंहटाएं