देश-वेश और जाति, धर्म का, मन में कुछ भी भेद नहीं। भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।। सरदी की ठण्डक में ठिठुरा, गर्मी की लू झेली हैं, बरसातों की रिम-झिम से जी भर कर होली खेली है, चप्पू दोनों सही-सलामत, पर नौका में छेद कहीं। भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।। सुख में कभी नही मुस्काया, दुख में कभी नही रोया, जीवन की नाजुक घड़ियों में, धीरज कभी नही खोया, दुनिया भर की पोथी पढ़ लीं, नजर न आया वेद कहीं। भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।। आशा और निराशा का संगम है, एक परिभाषा है, कभी गरल है, कभी सरल है, जीवन एक पिपासा है, गलियों मे बह रहा लहू है, दिखा कहीं श्रम-स्वेद नहीं। भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012
"नजर न आया वेद कहीं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
यथार्थ को स्पष्ट करती सुदर रचना!
जवाब देंहटाएंगलियों मे बह रहा लहू है, दिखा कहीं श्रम-स्वेद नहीं।भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।
.....आभार!
दार्शनिकता के भावों से परिपूर्ण रचना ....बहुत सुन्दर कुछ अलग
जवाब देंहटाएंभावों में दार्शनिकता और संतुष्टि परिलक्षित करती कविता.
जवाब देंहटाएंआशा और निराशा का संगम है, एक परिभाषा है,
जवाब देंहटाएंकभी गरल है, कभी सरल है, जीवन एक पिपासा है,
गलियों मे बह रहा लहू है, दिखा कहीं श्रम-स्वेद नहीं।
भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।
.....जीवन की सच्चाई का गहन और सुंदर प्रवाहमयी चित्रण...आभार
छेद नाव में होने से भी, कभी नहीं नाविक घबराया ।
जवाब देंहटाएंजल-जीवन में गहरे गोते, सदा सफलता सहित लगाया ।
इतना लम्बा अनुभव अपना, नाव किनारे पर आएगी -
इन हाथों पर बड़ा भरोसा, बाधाओं को पार कराया ।
अगर स्वार्थ के काले चेहरे, थाली में यूँ छेद करेंगे -
भौंक भौंक के भूखे मरना, किस्मत में उसने लिखवाया ।।
नाव दुबारा फिर उतरेगी, पार करेगी सागर खारा ।
रखियेगा पतवार थाम के , डाक्टर फिक्स-इट छेद भराया ।।
सारगर्भित सत्य.
जवाब देंहटाएंजीवन अनुभव छिटकाती पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंशाष्त्री जी सच यही है जीवन तो जी लिया अब तो रिहर्सल है .कोई गिला नहीं कोई शिकवा नहीं .बहुत दिया देने वाले ने तुझको ,आँचल ही न समाये तो क्या, कीजे ,बीत गए जैसे ये दिन रैना ,बाकी भी कट जाए ,देश-वेश और जाति, धर्म का, मन में कुछ भी भेद नहीं।भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।दुआ कीजे .वीरुभाई सी ४ ,अनुराधा ,कोलाबा , नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िदेंशियल एरिया (नोफ्रा ) नेवी नगर, मुंबई-४००-००५
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
आरोग्य की खिड़की
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html
भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।
जवाब देंहटाएंआपने सही फरमाया,सुंदर रचना,.....
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
आशा और निराशा का संगम है, एक परिभाषा है,
जवाब देंहटाएंकभी गरल है, कभी सरल है, जीवन एक पिपासा है!
जीवन का सार यही है !
गलियों मे बह रहा लहू है, दिखा कहीं श्रम-स्वेद नहीं।………बेहद उम्दा और सारगर्भित रचना
जवाब देंहटाएंveerubhai ने कहा…
जवाब देंहटाएंनाव दुबारा फिर उतरेगी, पार करेगी सागर खारा ।जीवन पथ पे चलते चलते, कभी पथिक न हारा .
कृपया यहाँ भी पधारें रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_2612.html
मार -कुटौवल से होती है बच्चों के खानदानी अणुओं में भी टूट फूट
Posted 26th April by veerubhai
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_27.html
आशा और निराशा का संगम है, एक परिभाषा है,
जवाब देंहटाएंकभी गरल है, कभी सरल है, जीवन एक पिपासा है!
behtareeen.....
क्या कहने
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर