आखिर क्या बात है इस रचना में? 17 जून,2009 को यह रचना लिखी थी। मगर आज तक यह मेरी लोकप्रिय पोस्ट में नम्बर-1 पर चल रही है। आपके अवलोकनार्थ इसे पुनः प्रकाशित कर रहा हूँ। श्वेत-श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। आसमान में उमड़-घुमड़कर, छाये बादल।। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन रंग-रूप बदलता जाता पल-पल। आसमान में उमड़-घुमड़कर छाये बादल।। मम्मी भीगी , मुन्नी भीगी, दीदी जी की चुन्नी भीगी, मोटी बून्दें बरसाती, निर्मल-पावन जल। आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल।। हरी-हरी उग गई घास है, धरती की बुझ गई प्यास है, नदियाँ-नाले नाद सुनाते जाते कल-कल। बिजली नभ में चमक रही है, अपनी धुन में दमक रही है, आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल।। (चित्र गूगल छवियों से साभार) |
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शुक्रवार, 6 जुलाई 2012
"उमड़-घुमड़कर छाये बादल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी सी रचना.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
बहुत ही सुन्दर कविता है..
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक प्यारी प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: दोहे,,,,
सुन्दर कविता ||
जवाब देंहटाएंसादर ||
कविता के साथ चित्र भी बहुत खूबसूरत हैं .
जवाब देंहटाएंaaj to humne aapke ghar aa kar dekh bhee liye ye kaale baadal....mil kar bahut acha lagaa.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर मनमोहक चित्रों के साथ सुन्दर प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंजैसे चित्र वैसी कविता !!
जवाब देंहटाएंवाह !!
बहुत ही सुंदर कविता है। समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंwah, kitni sundar kavita hai!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनभावन रचना...
जवाब देंहटाएं:-)