सपनों में ही पेंग बढ़ाते, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। मँहगाई की मार पड़ी है, घी और तेल हुए महँगे, कैसे तलें पकौड़ी अब, पापड़ क्या भूनें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। हरियाली तीजों पर, कैसे लायें चोटी-बिन्दी को, सूखे मौसम में कैसे, अब सजें-सवाँरे सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। आँगन के कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा, रस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। |
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रविवार, 15 जुलाई 2012
"सावन में...." (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सटीक पंग्तियाँ,
जवाब देंहटाएंसावन पे महगाई भारी......!!
कुछ भूल रहे हैं
जवाब देंहटाएंअच्छा याद दिलाया
सावन में एक सुंदर
सा गीत बनाया ।
अच्छा याद दिलाया
जवाब देंहटाएंसावन में एक सुंदर
उमड़-घुमड़कर
"रिम-झिम,
रिम-झिम वर्षा
http://santoshbihar.blogspot.in/
आँगन के कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
जवाब देंहटाएंरस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
आदरणीय शास्त्री जी बहुत सुन्दर ..सावन मन भावन सच में रंग ही फीका दिखा रहा है दोषी तो हम सब कुछ हैं ही ...
जो जो कमियाँ दिखीं यहाँ पर भूल न जाए सावन में
पेड़ लगायें एक एक तो हरियाली आये सावन में
भ्रमर ५
सावन का सुन्दर चेहरा दिखाया है ..सुन्दर लिखा है..
जवाब देंहटाएंरस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
जवाब देंहटाएंमेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।।theek bole.....sir.
बहुत ही खुबसूरत सावन में भीगी पंक्तिया....
जवाब देंहटाएंआँख या बादल, किसका पानी देखें हम..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाएं पढने से लगता है कि सावन आ गया
हरियाली तीज की याद दिला दी है आपने |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रवृष्टि कल दिनांक 16-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-942 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
सार्थक भाव व्यक्त करती रचना
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी -
जवाब देंहटाएंबढ़िया गीत ।।
हर शाखा पर उल्लू बैठे, कैसे झूला डाल सकेंगे ।
हरियाली सावन की लेकिन , उल्लू नहीं हकाल सकेंगे ।
हुआ असर यह मँहगाई का, गाई गई महज मँहगाई -
पानी पर ही तले पकौड़े, पैबन्दों से लाज ढकेंगे ।।
झूले तो पड गये सावन आयो
जवाब देंहटाएंयुनिक ब्लाaग ----- फेसबुक टाईमलाईन
sawan ke jhoolon ne mujhko bulaaya....
जवाब देंहटाएंसावन में .
जवाब देंहटाएं.बहुत सुन्दर कविता..
आज भी सावन में झूले याद आते हैं..
वाह ... बेहतरीन भाव लिय उत्कृष्ट लेखन ...आभार
जवाब देंहटाएंAti sundar.
जवाब देंहटाएं............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
बहुत लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसावन अबकी महगां पड़ा, महगां पडा त्यौहार
जवाब देंहटाएंमहगाई के इस मार से ,भूल रहे है शिष्टाचार,,,,,