बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।। हर पत्थर हीरा बन जाता, जब किस्मत नायाब हो, मोती-माणिक पत्थर लगता, उतर गई जब आब हो, इम्तिहान में पास हुआ वो, तपकर जिसका तन निखरा। बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।। नंगे हैं अपने हमाम में, नागर हों या बनचारी, कपड़े ढकते ऐब सभी के, चाहे नर हों या नारी, पोल-ढोल की खुल जाती तो, आता साफ नज़र चेहरा। बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।। गर्मी की ऋतु में सूखी थी, पेड़ों-पौधों की डाली, बारिश के मौसम में, छा जाती झाड़ी में हरियाली, पानी भरा हुआ गड्ढा भी, लगता सागर सा गहरा। बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।। |
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सोमवार, 30 जुलाई 2012
"उलट-पलटकर देख ज़रा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सत्य वचन परखने के बाद ही तो असली पहचान होती है
मित्र! ठीक कहा आप ने-सच है कि -
जवाब देंहटाएंबिना कसे कब 'सोना'-'पीतल में पाता है भेद कोंई |
पैनी आँख से मिल पाती है किसी नाव में छेड़ कोई||
भीतर पता क्या 'मन' में लोग छिपाए बैठे हैं-
पढ़ें पोथियाँ म्प्ती मोटी, चाहे पढ़ लें वेद कोंई ||
सही परख की है आप ने |
मित्र आप ने बिल्कुल सही बात कही है !मेरा समर्थन इस तरह है --
जवाब देंहटाएंबिना कसे कब 'सोना'-'पीतल'में पाता है भेद कोंई ?
पैनी आँख से मिल पाता है किसी 'नाव' में 'छेद' कोंई ||
भीतर पता नहीं क्या 'मन'में लोग छिपाये बैठे हैं-
पढ़ें पोथियाँ मोटी मोटी चाहे पढ़ लें 'वेद' कोंई ||
सही परख की है आप ने |
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसही बात है परखे बिना कैसे पता ,कौन खरा कौन खोटा........
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना.
सादर
अनु
बिलकुल सही बात बिना बरते खोट का कैसे पता चलेगा बहुत बढ़िया प्रस्तुति शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंखोटा यदि सिक्का होता,चलता नही बाजार में
जवाब देंहटाएंएक हाथ ताली नही बजती,राजनीति संसार में,,,,,
बढ़िया प्रस्तुति शास्त्री जी,,,,
बढ़िया प्रस्तुति शास्त्री जी,आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया,मन प्रसन्न हो गया आपको साधुबाद.
जवाब देंहटाएंमनोज जैसवाल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति. आभार. मोहपाश को छोड़ सही राह अपनाएं . रफ़्तार ज़िन्दगी में सदा चलके पाएंगे .
जवाब देंहटाएंपोल-ढोल की खुल जाती तो, आता साफ नज़र चेहरा।
जवाब देंहटाएंबिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।...
waah....Great expression...
.
जीवन का सत्य कई परतों के अन्दर छिपा रहता है, कभी आसानी से तो कभी मुश्किल से सामने आता है।
जवाब देंहटाएंपोल-ढोल की खुल जाती तो, आता साफ नज़र चेहरा।
जवाब देंहटाएंबिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।...वाह: बढ़िया प्रस्तुति शास्त्री जी,,,,आभार
hmmm sochne wali baat hai!
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