कोयल और कबूतरी, नहीं सुरक्षित आज।
वर्तमान परिपेक्ष्य में, दूषित हुआ समाज।१।
इंसानों के अंग में, बढ़ी हुई है खाज।
प्रदूषण के दौर में, करना कठिन इलाज़।२।
बदल गये हैं ढंग सब, बदले रीति-रिवाज।
रिश्तों-नातों का नहीं, कोई मतलब आज।३।
समय भोग का चल रहा, नहीं योग का काल।
मानवता का चेहरा, हुआ बहुत विकराल।४।
अपनी माता के वसन, लोग रहे हैं नोच।
आज सपूतों की हुई, कितनी गन्दी सोच।५।
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शुक्रवार, 4 जनवरी 2013
"सामयिक दोहे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुन्दर |
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की #
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसामयिक दोहे ना -बालिग़ -वयस्कों को ललकारते .
सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंदुखी कर गयी पिछले वर्ष की घटनायें।
जवाब देंहटाएंभावनात्मक सार्थक अभिव्यक्ति ..आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक,सुंदर दोहे,,,
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,सार्थक अभिव्यक्ति,प्रभावशाली प्रस्तुति, बदल गये हैं ढंग सब, बदले रीति-रिवाज।
जवाब देंहटाएंरिश्तों-नातों का नहीं, कोई मतलब आज।३।
समय भोग का चल रहा, नहीं योग का काल।
मानवता का चेहरा, हुआ बहुत विकराल।४।
अपनी माता के वसन, लोग रहे हैं नोच।
आज सपूतों की हुई, कितनी गन्दी सोच।५।
बहुत सुन्दर सार्थक प्रभावशाली अभिव्यक्ति, ..आभार..
जवाब देंहटाएंatyant prabhawshali.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति .आपकी सद्य टिपण्णी हमारी महत्वपूर्ण धरोहर है .
जवाब देंहटाएंअपनी माता के वसन, लोग रहे हैं नोच।
आज सपूतों की हुई, कितनी गन्दी सोच।५।
सार्थक सृजन
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