तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
दया उन्हीं पर दिखलाओ, जो
दिल से माफी माँगें,
कुटिल, कामियों को फाँसी पर जल्दी से हम टाँगें,
ऐसा बने विधान देश का, जिसमें
हो खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
ऊँचा पर्वत-गहरा सागर, हमको
ये बतलाता है,
अटल रहो-गम्भीर बनो, ये
शिक्षा देता जाता है,
डर कर शीश झुकाना ही तो, खो
देता है खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
तुम प्रताप के वंशज हो, उनके
जैसा बन जाओ तो,
कायरता को छोड़, पराक्रम
जीवन में अपनाओ तो,
याद करो निज आन-बान को, आ
जायेगी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
कंकड़ का उत्तर हमको, पत्थर
से देना होगा,
नीति यही कहती, दुश्मन
से लोहा लेना होगा,
निर्भय होकर दिखलानी ही होगी अपनी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों
की खुद्दारी।।
|
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सोमवार, 28 जनवरी 2013
"गद्दारों से गद्दारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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याद करो निज आन-बान को, आ जायेगी खुद्दारी।
जवाब देंहटाएंतभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी,,,,,,प्रभावी सुंदर पंक्तियाँ,,,,
सुन्दर रचना -
जवाब देंहटाएंखुद्दारों की खुद्दारी बचानी है-
शठे शाठ्यम् समाचरेत।
जवाब देंहटाएंबनी रहे भारत की शान..जोश भरी रचना !
जवाब देंहटाएंगौरवपूर्ण काव्य रचना !!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंगौरव गाथा का जोशीला गीत -बहुत सुन्दर
New post तुम ही हो दामिनी।
आन-बान-शान करें हिफाजत,तभी खुद्दारी रह पायेगी,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कर्ष प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 29/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्रदर चना ...आभार
जवाब देंहटाएंहमारे अन्दर खुद्दारी तो होनी ही चाहिए ,,,,,
जवाब देंहटाएंओजपूर्ण रचना
सादर !
रोज नयी शब्द रचना कैसे कर लेते हैं आप!!!!!!
जवाब देंहटाएंभारतीय नागरिक - Indian Citizen जी!
जवाब देंहटाएंमुझे क्या पता?
नही जानता कैसे बन जाते हैं, मुझसे गीत-गजल।
जाने कब मन के नभ पर, छा जाते हैं गहरे बादल।।
ना कोई कापी या कागज, ना ही कलम चलाता हूँ।
खोल पेज-मेकर को, हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।
देख छटा बारिश की, अंगुलियाँ चलने लगतीं है।
कम्प्यूटर देखा तो उस पर, शब्द उगलने लगतीं हैं।।
नजर पड़ी टीवी पर तो, अपनी हरकत कर जातीं हैं।
चिड़िया का स्वर सुन कर, अपने करतब को दिखलातीं है।।
बस्ता और पेंसिल पर, उल्लू बन क्या-क्या रचतीं हैं।
सेल-फोन, तितली-रानी, इनके नयनों में सजतीं है।।
कौआ, भँवरा और पतंग भी इनको बहुत सुहाती हैं।
नेता जी की टोपी, श्यामल गैया, बहुत लुभाती है।।
सावन का झूला हो, चाहे होली की हों मस्त फुहारें।
जाने कैसे दिखलातीं ये, बाल-गीत के मस्त नजारे।।
मैं तो केवल जाल-जगत पर, इन्हें लगाता जाता हूँ।
क्या कुछ लिख मारा है, मुड़कर नही देख ये पाता हूँ।।
जिन देवी की कृपा हुई है, उनका करता हूँ वन्दन।
सरस्वती माता का करता, कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
हटाएंकरता हूँ तन मन से बंदन,
मैं जन मन की अभिलाषा का।
अभिनन्दन अपनी संस्कृति का,
आराधना अपनी भाषा का।
`
जिस भाषा को वह समझता है उसी में उत्तर दे कर समझा देना ही उचित है !
जवाब देंहटाएंमक्कारों से मक्कारी हो, गद्दारों से गद्दारी।
जवाब देंहटाएंतभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
बहुत सुन्दर ..