जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए,
दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
आदमी के सितम-जुल्म को सह रहे,
परकटे से शज़र निज कथा कह रहे,
रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए,
कर रहे हम इन्हीं का हमेशा दमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
ये हमारे लिए मुफ्त उपहार हैं,
कर रहे देश-दुनिया पे उपकार हैं,
ये बचाते धरा को हमारे लिए,
रोग और शोक का होता इनसे शमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
ये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे,
घोटकर हम इन्हीं को दवा पी रहे,
तन हवन कर रहे ये हमारे लिए,
इनके तप-त्याग को है हमारा नमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 27 जनवरी 2013
"हमारा चमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
आदरणीय सर प्रणाम, सार्थक सोंच आज हमारे देश में प्रयावरण के साथ हो रहे अत्याचार का सुन्दर वर्णन किया है, इस ओर ध्यान दिलाने हेतु अनेक-अनेक धन्यवाद बहुत ही सुन्दर रचना मन भा गई, हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर.
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति सचेत करती सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे,
जवाब देंहटाएंघोटकर हम इन्हीं को दवा पी रहे,
तन हवन कर रहे ये हमारे लिए,
इनके तप-त्याग को है हमारा नमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
वनस्पति प्रेम को समर्पित सुन्दर रचना .
बहुत बढ़िया आदरणीय |
जवाब देंहटाएंशुद्ध हवा हितकर दवा, पादप के उपहार |
मानव जीवन लालची, हरपल रहा सँहार ||
शुद्ध हवा हितकर दवा, पादप के उपहार |
हटाएंमानव जीवन लालची, हरपल रहा सँहार |
हरपल रहा सँहार, वार पर वार किये है |
काट रहा जो डाल, पैर वह वहीँ दिए है |
रे नादाँ इंसान, चेताये तुझको रविकर |
कर पौधों से प्यार, हवा होती है हितकर |।
यदि प्रकृति के साथ यह दोहन नहीं रोका तो भारत में कयामत से पहले ही कयामत हो जायेगी.
जवाब देंहटाएंएक बड़ा उपकार, हमारे ऊपर इनका।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
जवाब देंहटाएंइनके तप-त्याग को है हमारा नमन!
जवाब देंहटाएंखिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
उम्दा प्रस्तुति !!
बहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश लिए रचना .....
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि को आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
पर्यावरण के प्रति सचेत करती प्रेरक रचना,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
अनन्त उपकार हैं इस प्रकृति के हम पर इंसान
जवाब देंहटाएंमानता कहाँ है!
पर्यावरण के दोहन पर सुंदर प्रस्तुती,इसका खामियजा तो हम सब भुगत ही रहे है।
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के लिए आपके ऐसे विचारों को पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
ये हमारी प्रदूषित हवा पी रहे,
जवाब देंहटाएंघोटकर हम इन्हीं को दवा पी रहे,
तन हवन कर रहे ये हमारे लिए,
इनके तप-त्याग को है हमारा नमन!
खिल उठा है इन्हीं से हमारा चमन!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति