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तेरह-ग्यारह से बना, दोहा छन्द प्रसिद्ध।
सरस्वती की कृपा से, करलो इसको सिद्ध।१।
चार चरण-दो पंक्तियाँ, करती गहरी मार।
कह देती संक्षेप में, जीवन का सब सार।२।
सरल-तरल इस छन्द में, बहते गहरे भाव।
दोहे में ही निहित है, नैसर्गिक अनुभाव।३।
तुलसीदास-कबीर ने, दोहे किये पसन्द।
दोहे के आगे सभी, फीके लगते छन्द।४।
दोहा सज्जनवृन्द के, जीवन का आधार।
दोहों में ही रम रहा, सन्तों का संसार।५।
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रविवार, 13 जनवरी 2013
"दोहा-चार चरण-दो पंक्तियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे के सुखरस के आगे बाकी सब फीके है,दोहों को पढने में जो आनन्द है वो और कहाँ।बेहतरीन शब्दों में सुन्दर दोहे।आपका बहुत आभार शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंदोहे के दोहे,
जवाब देंहटाएंसीखे औ सोहे।
दोहे के माध्यम से दोहे की विशेषता -अति सुंदर
जवाब देंहटाएंNew post: कुछ पता नहीं !!!
तुलसीदास-कबीर ने, दोहे किये पसन्द।
जवाब देंहटाएंदोहे के आगे सभी, फीके लगते छन्द
बहुत सुन्दर.
एकदम सही बात कही गयी है। वास्तव में पढने में सहज सरल "दोहा" ही है। बहुत ही सुन्दर ढंग से इसके गुर शामिल है आपके दोहों में ......आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहावली |
जवाब देंहटाएंआभार ||
वाह वाह बहुत सुन्दर और सारगर्भित दोहे
जवाब देंहटाएंवाह जबरदस्त दोहे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।। मंगल मंगल मकरसंक्रांति ।।
जवाब देंहटाएंदोहे सरल और अच्छे |मकर संक्रांति पर शुभ कामनाएं आपको सपरिवार |
जवाब देंहटाएंआशा
हर दोहा सारगर्भित.....
जवाब देंहटाएंसर जी मछली जब कांटे में आ जाती है तब वह पानी में ही होती है .कांटे से मुक्त होने के लिए वह मचलती ज़रूर है लेकिन जहां तक पीड़ा का सवाल है निरपेक्ष बनी रहती है मौन सिंह की तरह
जवाब देंहटाएं.मछली के
पास प्राणमय कोष और अन्न मय कोष तो है ,मनो मय कोष नहीं है .पीड़ा केंद्र नहीं हैं .हलचल तो है चेतना नहीं है दर्द का एहसास नहीं है .शुक्रिया ज़नाब की टिपण्णी के लिए .
मंगल मय हो संक्रांति पर्व .देश भी संक्रमण की स्थिति में है .सरकार की हर स्तर पर नालायकी ने देश को इकठ्ठा कर दिया है .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
दोहे पे दोहे ,सब तोकू टोहे